SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांच ववहार१०९ केवळ-अवधी ज्ञानी२ मन-पज्जव३ चउद४ पूर्व दस५ सारो। नव६ पूर्वधर ए षट विधि, है धुर-'आगम-व्यवहारो'। आगम ववहार सुणो भव जीवां ।। ११० जघन्य थकी जे सूत्र निशीथज, तास जाण सुविचार | आठ पूर्वधर उत्कृष्ट कहियै, द्वितीय-'सूत्र-व्यवहार'।। १११ देशांतर जे रह्या गीतार्थ, तेह नै पासे ताम । जेह अगीतार्थ साधू नै मूकीजै, तिण ठांम।। ११२ मूढै अर्थ- पद करि दूसण नो, प्रायश्चित पूछावै। तास आज्ञा थी दीयै प्रायश्चित, ते- 'आज्ञा-ववहार' कहावै।। ११३ स्थविरादिक नै पास धारयो, जे प्रायःश्चित पिछाणी। तेह 'धारणा- व्यवहार' चउथो, धारणा थी करै जांणी ।। तुर्य- 'धारणो- व्यवहार' कह्युए। ११४ पक्षपात रहीत स्थापै आचार्य, ते पंचम- 'जीत- ववहारो'। द्रव्य क्षेत्र काळ भाव देखी नै, बलै संघयणादि विचारो॥ सोरठा११५ ठाणांग पंचम ठाण रे, द्वितीय उद्देशक वृत्ति में। जीत व्यवहार सुजाण रे, आख्यौ इम कहिये तिको।। ११६ जे बहुश्रुत बहु बार रे, प्रवत्यौं वज्यौ नथी। वर्ते वयाँ लार रे, कार्य है ए जीत करी।। ११७ ए पंच व्यवहार प्रवर्ततो साधु, आज्ञा नो आराधक होयो। एहवो श्री जिनराज कह्यो छै, पाठ विषै अवलोयो।। ११८ सूत्र ववहार नी टीका विषै कह्यो, धुर च्यातूं ववहारो। तीर्थ अंत तांई नहीं रहसी, जीत तीर्थ लग सारो। ११९ पंच व्यवहारपणे प्रवर्ततो आज्ञा नों, आराधक आख्यो। इण लेखे धुर व्यवहार आगम छै एहवो, जीत प्रभु दाख्यो। १२० नवकार ना पद पंच परुप्या, पांचू इ छै वंदनीको। तिमहीज ए ववहार पंच है, तंत न्याय तहतीको ।। १२१ साधु-साधवी रे लांबी पिछेवड़ी, सूत्र विषै कही नाहि। लांबी पंच हाथ नी थापी, जीत ववहार थी त्यांही। . १.लय-चतुर विचार करी नै देखो। ४२८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy