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६२ साधां रै स्थानक आर्यां नै वेसणो, वो कहैता सूत्र मांही।
बलि कहै मौ नै तो खबर पड़ी नही, यां झूठा नै किम होसी मोखो। ६३ ते पिण जाझा तीन वर्ष लग, खबर पड़ी नही केमो।
ते पिण भोळा लोकां नै ठगवा काजै, झूठ बोलै छै एमो।। ६४ कोइ राजसभा में आयो धुतारो, एक मिनका नैं साथै लेइ।
कहै लाख रुपया कोइ देवो मोनै, तो देवू मिनको एही।। ६५ जद किण ही पूछ्यौ- इण में स्यूं गुण एहवो, जद कहै बारै कोस रे माही।
इण री बास थकी नही आवै उंदर, एहवो बोल्यो झूठ बणाई ।। ६६ उण मिनका रौ कान कट्यौ देखी तिण नै, किण ही बुद्धिवंत पूछ्यो ताह्या।
थां रे इण मिनका रो कान कट्यौ किम, ते कारण मोय बतायो। जब कहै इक दिन नींद में सूतां, कांन कुरट्यो उंदर आवी सीधो। तू कहतो बारै कोस में नही रहै मूसो, इण रा ठागा रौ उघाड़ कीधौ।। तिम जाझा तीन वर्ष लग दोष कह्या बहु, सूत्र रो नाम लेइ अजाणो।
बलि कहे खबर पड़ी नही मौने, ए प्रत्यक्ष ठागो पिछाणो।। ६९ कहै बारै कोस में नही उंदर, कान कुरट्यां री खबर न पाई।
ज्यूं गण मांहै थाप रा दोष केहतो बहु, बलि कहै खबर पड़ी नाही।। सिरदारगढ़ वाळा नै लेखे, जो साधु बतावता नाही। तौ घणां वर्षा लग त्यारै लेखे, ए ठागो चलावतो दीसै त्यांही।। न्याय मार्ग लेखे तौ गण सूं टळिया, तेहिज दिन सूं ठागो।
नवी दीक्षा लीधी ते पिण ठागौ, गण थी नीकळ लगायो दागो।। ७२ बलै कहै टाळोकर भीखणजी नै, सरधू ववहार में साधो।
बलै त्यांरा बोला में दोष परुपै, करै घणो विखवादो।। ७३ स्वाम भिक्षु छतां साधा रे स्थानक, अज्जा वेसती आयो।
तिण में सूत्र नां अर्थ री समझ पड्यां विण, अणहुँतो दोष बतायो।। ७४ कियो प्रथम चौमासो तिण ग्रामे, बलि द्वितीय वर्ष अवधारा।
तिण ग्रांम चौमासो करै बड़ां लारे, इम दोष कहै अविचारयो। ७५ वर्ष सत्तावनै भिक्षु रै साथै, हेम कीधौ पुर चउमासो।
हेम दीक्षा बड़ा वैणराम जी साथै, पुर कियो अठावनै बासो॥ ७६ ए पिण स्वाम भिक्षु रो बांध्यौ, सुद्ध जीत ववहारो।
तिण माहै मूर्ख दोष बतावै, कर-कर तांण गिमारो।। ७७ आसरै वर्ष पचासै टळिया, रूपचंद अखेरामो।
त्यां दोढ सै आसरै, दोष बताया, स्वाम भिक्षु में तामो॥
टाळोकरों की ढाळ : ४२५