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दूहा
भीखणजी स्वामी भला, करिवा जग उद्धार। भवि जीवां रा भाग सूं, अवतरिया इण आर ।। सिख सिखणी करणा सहु, इक गणपति रै नाम । संवत् अठार बतीस में, धुर मर्याद तांम।। कर्म जोग इक दोय तिण, नीकळे गण थी बार। तीरथ में गिणवा न तसु, ए भिक्खू वच सार।। क पैंताळीसै लिखत, गण माहै वा जाण। निकळ्यां अवगुण अंस ही, बोलण रा पचखांण।। गण थी निकल्यां अन्य प्रति, ले जावणां नहीं साथ। ए पिण तसु पचखांण छै, इम भिक्षु आख्यात ।। कह्यौ गुणस, लिखत फुन, कर्म जोग गण बार। निकळे तास न सरधq, तीरथ च्यार मझार ।। कदा सर्व साधु भणी, असाधु सरधावा ताहि। फैर दीक्षा लै तेह नैं, साधु सरधवू नाहि ।। कर्म उदय गण थी टळ्यां, हुंता अणहुंता जांण। अवगुणवाद ज अंस ही, बोलण रा पचखांण ।। किण ही मुनि अज्जा तणी, संक प. ज्यूं सोय। बोलण रा पचखांण छै, ए भिक्षु वच जोय॥ (कदा) त्याग भांग विटळ हुवै, हळुकर्मी न मानै ताहि। मांनै उण सरीखो विटळ, ते लेखा में नाहि ।। श्रद्धा रा क्षेत्रां मझे, रहिवा रा पचखांण। इक भाई बाई हुवै, त्यां पिण त्याग सुजाण।। बाटै बहितां एक निशि, रहै कारणै जांण। ते पांच विगै नै सूंखड़ी, खावण रा पचखांण।। गण में जाचै फुन लिखै, जो निकळे गण बार। साथै ले जावण तणां, तसु पचखांण विचार।। इत्यादिक भिक्षु भली, बांधी वर मर्याद। हळुकर्मी हरखै सुणी, पामै अति अह्लाद ।। भारीकर्मा जीवड़ा, सांभळ धरता द्वेष। ऊंधा अर्थ करै तिकै ज्यां रे, काळी कर्म कुरेख॥
टाळोकरों की ढाळ : ४२१