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४ थे घणा दोष कहो गुरु मांहि, घणा वर्सा रा जांणो छो ताहि ।
तो थे पिण साधु किम थाय, जाण-जाण भेळा रह्या मांय ।। ५ जो यांमै दोष घणा छै अनेक, कदा दोष नहीं छै एक। .ते तो केवळ ज्ञानी रह्या, देख, पिण थे तो बूडा ले भेष।।
जो यांमै दोष कह्या थे साचा, तोही थे तो निश्चै नही आछा। जो झूठा कह्या तो विशेष भंडा, थे तो दोनूं प्रकारे बूडा॥ थे दोषीला नै वांद्यां कहो पाप, भेळा पिण रह्यां कहो संताप।
दोषीला नै देवै आहार पाणी, बले उपधादिक देवै आंणी।। ८ हर कोई वस्तु देवै आण, करै विनय वियावच जाण।
दोषीलां सूं कोइ करै संभोग, तिण रा जाणो छो माठा जोग। इत्यादिक दोषीलां सूं करंत, तिण में पाप-कहो छो एकंत।
औ थे जाणे सारा किया काम, ते पिण घणां वसा लग ताम ।। १० घणा वर्स किया एहवा कर्म, तिण सूं बूड गयो थारो धर्म।
दोष निरंतर सेवण लागा, हुआ विरत विहूंणा नागा ।। ११ ओ थे कीधो अकार्य मोटो, छांनै-छांनै चलायो खोटो।
बांध्या थे तो बहु कर्म रा जाळो, आतमा नै लगायो काळो।। थे गुरु नै निश्चै आण्या असाध, त्यांनै वांद्यां जांणी असमाध।
त्यांराइज वांद्या नित्य-नित्य पाय, मस्तक दोनूं पग रै लगाय ।। १३ यांसू कीधा थे बारै संभोग, ते पिण जाण्या सावध जोग।
सावद्य सेव्यो निरंतर जाण, थे पूरा मूढ अयांण।। १४ थे भण-भण नै पानां पोथा, चारित्र विण रहि गया थोथा।
थे कहो अर्थ करां म्हे गूढा, तो थे भण-भण नै कांय बूडा।। १५ विहार करता थे गांम गांम, शिष्य शिष्यणी वधारण काम।
किण नै देता बंधो कराय, किण नै देता घर छोडाय।। ११६ बले कर-कर गुरु रा गुण ग्रांम, चढावता लोकां रा परिणाम।
जब गुरु नै खोटा थे जाणंता ताहि, ओरा नै क्यूं न्हांखता यां मांहि। १७ पोतै पडिया जांणो खाड मांय, तो औरां नै डबोवण रो उपाय।
(जाण-२ करता था ताय) पांच पद री वंदणा सीखावता ताह्यो, तिण में गुरु रो नाम घलायो॥ १८ तिण गुरु नै वांद्यां जांणता पाप, तो औरां नै कांय डबोया आप।
ज्यूं नकटो कोइ नकटा हुआ चाहै, असुभ उदै माठी मति आवै॥ १९ ज्यूं थे डूबता दोषीलां मांहि, तिम औरां नै डबोवता ताहि। औरां तूं करता एहवो उपगार, थारे भणियां रो योहिज सार ।।
लघु रास : ४०५