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२२७ ज्यां मांहि दोष कह्या था अनेक, त्यारै दंड न ठहरायो एक । ज्यां मांहि दोष कह्या भारी, त्यारै न ठै हरायो दंड लिगारी ॥ २२८ अवगुण ज्यांमै कहिता दिन रात, त्यांरै दंड री न कीधी बात । दोय रात्रि रहीं पंचमो अवनीत, साधां ने बोल्यो इण रीत || २२९ म्हारै जूं न्हांखवा री श्रद्धा सोय, इम कही निकळियो जोय । जावा लागा दूजा चौथा मांहि, त्यां तिण लीधो नाहि ॥ २३० पछै बे कोश गाम जइ पाछो आयो, पांणी लीला री अजयणा अथायो । पछै जूं न्हाखवा रो दोष कही नै, गण में आयो एक रात्रि रहीनै ॥ २३१ हिवै तीजा अवनीत री बात, सांभळजो नीकळिया
अवदात ।
सवा छ मास
वार, जद मन
में कियो विचार ॥
नवो चरण उदार ।
२३२ अधिक दिवस थयां सुं अवधार, देवैला वंदणा में नाम घाल करूं साखी, ज्यूं रहै इसी विधनाकी ॥ २३३ तेजसी नै साखी करि कहै आम, हूं घालूं वंदना में नाम । आचार्य चौमासो तिण दिशि लीनी, तिक्खुतो गुण वंदना कीनी ॥ २३४ पंचम पद में घालेसुं नाम, ते पिण थांरी साख छै ताम । इण विध प्रतीत पूरी उपजाइ, ते छानी न राखी काइ ॥ आगै सुणो अवदात ।
२३५ संवत्सरी ना दिन नीं ए बात, हिवै
गाउ सैहर तिहां चौमासै संत, एक गृहस्थ आवी भाखंत || २३६ तीजा अविनीत तणा समाचार, ते सांभळजो विस्तार | त्यां को पांच बोल करो अंगीकार, तो हूं गण में आवूं इण वार ॥ २३७ १. मोनै तप देवै पिण छेद न देवै, २. म्हांरा पोथी पांना नहीं लेवै । २. स्वामीजी भेळो बहु साधां मांहि, बे निशि थी अधिक राखै नाहि ॥ २३८ ४. आगै बगसीस ज्यूं री ज्यूं राखै, कांम बोज प्रमुख री न आखै । ५. मांहि लेइ नै न छोड़ै , तो हूं गण में आवूं सोय ॥ २३९ तिण गृहस्थ नै साधां कही बात, छेद तप तो स्वामीजी रै हाथ | दोय रात्रि उपरंत री ताणै, ते पिण स्वामीजी जाणै ॥ २४० दोष विना तोनै छोडै नांय, बोल बीजां री अरज कराय । इण विधि गण में आवा री धारी, दोष री नहीं रही लिगारी ॥ २४१ अधिक अवनीत पंचमोर जाण, हिवै तास वृतांत पिछांण । छमास बारै रही गण मांहि आया, त्यांरा घट मांहि अधिकी माया ।। १. गव्यूति - दो कोश | २. छोगाजी (लघु)
लघु रास :
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