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________________ जन १९७ लोक कहै बहु दोष बताया, बोल छोडायां विण आया। तिण सूं बोल छोड्यां विणआवां सोय, आछी न लागै कोय।। १९८ रूप ऋषि कह्यो-इसड़ो मान, न करणो साधु नै जान। अधिक अवनीत बोल्यो जद वाणो, दाय आवै ज्यूं जाणो।। १९९ हरख कह्यो-इसड़ो मान करीनै, क्यूं हूवो खुराब टलीनै। इण रै अशुभकर्म उदै हुआ आण, मुख सूं पिण नीसरै खोटी वाण। २०० वेमुख हुवै जो एक बलाइ, ते पिण करै बिगाडो जाइ। ___ म्हे तो पंच छां इण विध आखी, मूंढामूंढी साधां नै भाखी॥ २०१ दूजै अवनीत संतां नै एम, सुद्ध बात कही धर प्रेम। गण में संत अज्जा तपसी छै, ते म्हारै शिर ऊपर सही छै ।। २०२ थानै असाधु कहै कोइ ताय, तिण सूं चरचा करां म्हे जाय। पिण करां कांइ गळा तांइ भरिया, तिण कारण म्हे नीसरिया।। २०३ संत कहे-मुख गणपति अज्जा, त्यांसू थारै छै द्वेष अकज्जा। जद कहै-थे तो जांणो छो जी, पाछो मुनि नै एम कह्यो जी।। २०४ म्हे तो घणोइ कह्यो दलद्रीयां नै, पश्चिम थली कांनी जावो क्यांनै। उठी रह्या हुंता तो इति हुंती क्यांनै, कोइ जाणै न जाणतो म्हांनै॥ २०५ पहिला म्हे बारै नीकळ्या था ताहि, किणहि जाण्यो किणहि नांहि। इह विध दीनपणै भाखंत, बारै टळियां रा फळ चाखंत ।। २०६ गुरु यारी तिथ न कीधी काय, यांनै जाबक दिया छिटकाय। देश-देश रा श्रावक जांण, यांनै जाण्या जै'र समाण ।। २०७ चतुर विचक्षण श्रावक सोइ, यारी अद्दन राखै कोई। हंती मन मांन्या क्षेत्र विचरवा री आस, ते पिण हुआ निरास॥ २०८ जांण्यो अधिक मास हुआ दीक्षा आय, इम तीनां विचारयो ताय। जिम-जिम दिवस नैडा अति आवै, तिम तिम अधिक सीदावै ।। २०९ पांचूं अविनीत चौमासे ताम, तीन संत हुंता तिण गाम॥ ___ गाउ ऊपर इक सैहर उदार, तिहां चउमासै संत च्यार॥ २१० जोधांणै गणपति पास तिवार, आया कागद में समाचार। स्वामीजी म्हारो करै सिंघाड, दंड देसी ते लेसां धार ।। २११ पूछा नों उत्तर गणपति दीधो, लिखी नै सिखायोज सीधो। करार सिंघाड़ा रो करिनै जाण, माहै लेवां रा पचखांण॥ १.खोज खबर। ४. कोष। २. इज्जत। ५. मुनि हरषचंद जी आदि। ३. तेजपाल जी आदि जसौल में। लघु रास : ३८७
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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