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१४९ अधिक अविनीत विण च्यारू' टळिया, छानें विण पूछ्यां निकळिया । साधां जाण्यो रह्या छैला मार्ग गाम, दूजै दिन पिण नाया ताम || १५० अधिक अवनीत कपट करि सोय, पहिला छांनै पांना सूंप्या जोय । ओ तो लारै रह्यो निज मतलब जान, पाछिलो देखवा वर्त्तमान ॥ १५१ अधिक अविनीत कहै हूं जाउं, उणा कनै म्हांरा पांना ल्याउं । समझै तिण नै ल्याउं समझाय, इम कही गुरां नैं वाय ॥ १५२ किण ही कह यो चरण रा नहीं परिणांम, टळियो सैहजेइ कचरो ताम । जद कहै एक तिरै तो ही आछो, हुं समझाय ल्याउं पाछो ॥ १५३ पछै तीसरे दिवस पटमोहच्छब मांय, निज जोड़ गणि गुण गाय । पद युवराज तणा धर कोड़, गुण गाया गाथा जोड ॥ १५४ पछै दोय जणा नै सुगुरु पठाया, घणा कोस च्यारूं पै आया । दूजै संत तो निषेद्या सीधा, अधिक अविनीत तो डेरा दीधा ॥ १५५ समझावतां पाचूइ बोलै, अवगुणां रो पिटारो
खोलै । बोलां रा जाब देई समझाया, दूजै दिन पांचूं ठाय आया । १५६ क्षेत्र भळावो कहिजो गुरु नै सोय, मृगसिर मांहि दर्शन करां दोय । कौ पांच पद में घालसां नांम, बले आया पोहचावा ताम ॥ १५७ कह्यौ छ रात्रि बारै रह्या तसुं दंड, गुरु देसी ते लेस्यां अखंड । गण में दोष कह्या ते अनेक, छोड़ दीधी बोलां री टेक ॥ १५८ ते बोल छोड़णा ठहराया नाहि, गण में दंड ठहरायो न कांइ । उळटो दंड पोतै ओढनैं आया, टळ आबरू अधिक गमाया ॥ १५९ समझाय साधु आयो गुरु पास, समाचार सुणाया तास । नागोर नो चोखलो गुरां भळायो, जद त्यां पाछो कहिवायो ॥ १६० मन मान्या क्षेत्रां मांहि विचरस्यां स्वामीजी रै नामै शिष्य करस्यां । दिख्या देइ नै सूंपां नहीं ताय, जद गुरु नहीं मानी वाय ॥ १६१ गण में आय नव दिन घाल्यो नाम, पछै बारै नीकळिया ताम । इण विधि इण में आवा हूवा त्यारी, जब दोष न रह्या लिगारी ॥ १६२ गणपति नहीं किया अंगीकारी, जब चाल्या मूंह बिगाडी । अपछन्दा अविनीत, टाळोकर होसी घणा फजीत ॥
१. कसूम्बी से निकले - जीवोजी, कपूरजी, संतोजी, छोगजी (लघु) । २. चतुर्भुजजी और हंसराज जी को ।
३. मुनि हंसराज ।
४. नव दिन तक पंच पदवंदना में गुरु का नाम बोला ।
लघु रास : ३८१