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४३ कहि कहि कहुं कितरो, वस्तु बहु जग जाण।
गणि आणा आपे, तेहिज करज्यो प्रमाण।। ४४ कारण विन मुनिवर, विगय व्यंजन तरकारी।
मांगी ने न लिये, बलि मिरचादि विचारी॥ ४५ कारण स्यूं मुनिवर, विगय व्यंजन तरकारी।
मांगी ने लीधां, दोष नहीं छै लिगारी।। ४६ पाणी छाछ आछ ने, आटो रोटी आदि।
क्षुधा मेटण ने, मांगे भाव समाधि ।। ४७ बलि क्षुधा मेटण ने, राब मांगी ने ल्याय।
कांठा री कोर नी, राब व्यंजन में जणाय।। ४८ छाछ राब तणी परे, मांगी इखु रस ल्यावे।
पिण लोळपणां नी, चित नी लहर मिटावै।। ४९ भिक्षु भारीमाल, ऋषिराय सुपसाय ।
जयजश सुख संपति,गण वृद्धि हरख सवाय।। ५० चालीस निनाणु, संत सत्यारा मेळा।
वर शहर लाडणूं, गणि संपति रंग रेळा।।
३६८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था