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जे गोगुंदा थी आविया, त्यां पासे घर फरसाय। दूजे दिन विहार कराय दे, पाछला ने कळपे ताय। तथा गोगुंदा थी आविया, ते दिन फर्श करे विहार। पूठे मुनि रह्या त्यां भणी, दूजे दिन कळपे आहार।। तथा गोगूदे थी आविया, कांइ ते दिन बहरी आहार। विहार करे विण भोगव्या, ते दिन कळपे सार। तथा गोगुंदा थी आविया, ते दिन ग्रही भोगव विहार। नहीं कळपे ते दिन ते घरे, दूजे दिन कळपे सार। गोगुंदा थी आविया, दूजे दिन बहरी विहार।
त्यां बेहुं दिन फा तिके, पाछला ने कळपे सार।। (१०) गोगुंदा थी आविया, कांइ दूजे दिन भोगवी विहार।
त्यां बेहुं दिन फर्ध्या तिके, पाछला ने न कळ्पे सार। (११) तथा गोगुंदा थी आविया, कांई घर फर्ध्या ते टाण।
संत रावलियां जे हुंता, त्यां मांड्यो पात्र अजाण ॥ गोगुंदा थी आविया, दूजे दिन करै विहार।
तो पिण त्यां सहु मुनि भणी, ते घर रो नहि कळपे आहार।। २१ (१२) रावलियां संत आगे हुंता, कांई गोगुंदा थी च्यार।
बे मुनि पहिला आय ने, बहिरे रावलियां आहार॥ पूठे जे बे मुनि हुंता, ते फर्शी बिचलो गाम। तिण दिन आव्या रावल्यां, घर नहि फर्ध्या ताम॥ प्रथम मुनि बे आविया, ते दूजे दिन कियो विहार।
पछे आया ते तिहां रह्या, तो पिण कळपे सार॥ २४ (१३) तथा रावलियां संत आगे हुँता, बलि गोगुंदा थी आय।
बेहुं संता घर फर्शिया, गाम रावलियां मांय।। विहार कियो दूजे दिने, मुनि आगला ताय। दोनूं ना घर फर्शिया, पाछला ने कळपे नाय।। रावलियां गोगुंदा तणों, कांइ ओळखायो ले नाम। इण अनुसारे जाणवा, कांइ अपर नगर पुर गाम।। इमहिज गाम माहे मुनि, केइ रहे पुर बार। गोगुंदा रावलियां नों कह्यो, तिमहिज जाणो सार।। विहार करी चोमासे नो, पुर बाहिर कळपे मास।
तिण कारण पर गांम ज्यूं, पुर बाहिर न्याय विमास। १. अवसर।
पंरपरा नीं जोड़ : ढा०४: ३५३