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________________ कहिण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छ। तथा चोतीसा रे वर्स आर्यां रे मर्यादा बांधी, तिण में कह्यो-ग्रहस्थ कनै टोळा रा साध आर्यां री निंद्या करै तिण नै घणी अजोग जांणणी। तिण नै एक मास पांचू विगैरा त्याग छै। जितरी बार करै जितरा मास पांचू विगै खावा रा त्याग छ। 'तथा वनीत अवनीत री चोपी' में अवनीत नै घणो निषेध्यो छै। तथा रास में पिण विविध विविध कर नै ओळखायो। घणो निषेध्यो। ते गाथा१ 'थे घणां दोष जाणे था साख्यात, त्यां नै जाणे वांद्या दिन रात। तो थे पूरा अग्यानी बाल, थे सूलसो कितो एक काळ।। २ एक दोष रो सेवणहार, तिण वांद्या वधै अनंत संसार। थे घणां दोष जाण्यां त्यां मांय, त्यां रा हिज वांद्या नित पाय॥ भागलां रा वांद्या जाणे पायो, जिण मारग मांहे ठागो चलायो। रह्या कूड़ कपट मांहे झूल, हिवै थारो होसी कुण सूल।। जो थे गुर मांहे दोष बताया, घणा वरस थे राख्या छिपाया। तिण लेखे पिण थे इज भंडा, ग्यानादिक गुण खोइ बूड़ा। ५ जो थे दोष कह्या यां में कूरा, जब तो थे जाबक बूड़ा पूरा। थे दिया अणहुंता आळ, हिवै रुळसो किता एक काळ।। थे दोनूं विध बूड़ां इण लेखे, साच झूठ तो केवळी देखे। छद्मस्थ तो यां एहलाणे, थां नै जाबक झूठा जांणे॥ यां कनै पहिला अवगुण कहिवाय, पछै खिसट करै इण न्याय। __यां रा वचन नै सैठा झाले, यां नै पग-पग झूठा घले॥ ८ ए तो अवगुण बोले अनेक, बुधवंत न माने एक। यां नै जांणे पूरा अवनीत, यां री मूल नांणे परतीत।। अवनीतां रो करै वेसास, तो हुवै बोध बीज रो न्हास। च्यार तीर्थ सूं पड़िया काने, त्यांरी बात अज्ञानी माने॥ १० अवनीतां रो करै प्रसंग, तो साधां सूं जाए मन भंग। ए साधां नै असाध सरधावै, झूठा-झूठा अवगुण बतावै।। ११ यां रो जाय सुणे वखांण, तिण लोपी जिनवर आण। यां री तहत करै कोइ वाणी, आ दुरगति नी एलाणी। १२ किण रे उसभ उदै हुवै आंण, ते करै अवनीत री तांण। त्यां झूठा नै साचा दे ठहराइ, ज्यां रै अनंत संसार नहीं साइ॥ १.लय : सगळा साध सरीषा नाहि। २९० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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