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________________ अठाहरवीं हाजरी .. पांच सुमति तीन गुप्त पंच महाव्रत अखंड आराधणा। ईऱ्या भाषा एषणा में सावचेत रहिणो। आहार पाणी लेणो ते पक्की पूछा करी नै लेणो । सूजतो आहार पिण आगला रो अभिप्राय देख नै लेणो। पूजतां परठवतां सावधानपणे रहणो। मन वचन काया गुप्ति में सावचेत रहिणो। तीर्थंकर री आज्ञा अखंड आराधणी। भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देख नै श्रद्धा आचार प्रगट कीधा-विरत धर्म ने अविरत अधर्म। आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारै अधर्म। असंजती रो जीवणो बंछै ते राग, मरणो बंछे ते धेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नो मार्ग। तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। १८५२ रे वर्ष मर्यादा बांधी तिण में एहवो कह्यो-किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहणो, के गुरां नै कहणो, और किण ही आगे कहणो नहीं। किण ही आ· दोष जाण नै सेव्यो हुवै ते पाना में लिख्या विनां विगै तरकारी खाणी नहीं। कोइ साधु-साधवियां रा ओगुण काढ़े तो सांभळण रा त्याग छै। इतरो कहणो–'स्वामी जी नै कहिजो' जिण रा टोळा माहे रहिण रा परिणाम हुवै ते रहिज्यो। पिण टोळा बारे हुवा पछै साधु-साधवियां रा अवगुण काढण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छै। बले करली-करली मर्यादा बांधे त्यां में पिण ना कहिण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै छै। तथा चोतीसा रे वरस आर्यां रे मरजादा बांधी तिण में कह्यो-टोळा रा साध आर्यां री निंद्या करे तिण नै घणी अजोग जाणणी। तिण रे एक मास पांचू विगैरा त्याग छै। जितरी वार करै जितरा मास पांचू विगै रा त्याग छै। जितरी वार करै जितरा मास पांचू विगैरा त्याग छै। जिण आर्यां साथ मेळ्यां तिण आ· भेळी रहे अथवा आर्यों मांहोमां सेषे काळ भेळी रहे अथवा चोमासे भेळी रहै त्यां रा दोष हुवै तो साधां सूं भेळा हुवा केह देणो न कहे तो उतरो प्राछित उण नै छै। टोळा सूं छूट हुवा री बात माने त्यांनै मूरख कहीजे। त्यांनै चोर कहीजे। तथा पचासा रा गुणसठा रा लिखत में कह्यो-कर्म धको दीधा टोळा सूं टळे तो टोळा रा साध-साधव्यां रा हुंता अणहुंता अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। टोळा नै असाध सरध नै नवी दिख्या लेवै तो पिण अठीरा साध-साधवियां री संका पडै ज्यूं संका घालण रा त्याग छै। उपगरण टोळा मांहे करै ते, परत पाना लिखे जाचे ते, साथे ले जावण रा त्याग छै। तथा गुणसठा रा लिखत में कह्यो-इण सरधा रा भाई बाई हुवै जिण खेत्रां में एक रात उपरंत रहिणो नहीं। बाटे वहितां रहै तो एक राति कारण पड़िया रहे तो पांचू विगै ने अठारहवीं हाजरी : २७९
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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