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इहां अवनीत नै भात-भांत ओळखायो छै। ते भणी अवनीतपणो उत्तम हुवै सो छोड़ो। बारे पडै तो टोळा रा साध-साधव्यां रा अंस मात्र अवर्णवाद बोलणरा त्याग छै। यांरी अंस मात्र संका पडै आसता उतरे ज्यूं बोलण रा त्यांग छै। टोळा सूं फार नै साथे ले जावा रा त्याग छै। उ आवे तो ही ले जावा रा त्याग छै। टोळा मांहे न बारै नीकळ्यां अंस मात्र अवगुण बोलण रा त्याग छै। माहोमां मन फटे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। इम पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो। ते भणी सासण री गुणोत्कीर्तन सूप बात करणी। भागहीण हुवै सो उतरती बात करे, भागहीण सुणे। सुणी गुरां ने न कहै ते पिण भागहीण। तिण नै तीर्थंकर नो चोर कहणो हरामखोर कहणो।
आयरिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था विणं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं॥
आयरिए नाराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं॥
इति 'दशवैकालिक में कह्यो-ते आज्ञा मर्यादा आराध्यां इह भव पर भवे सुख कल्याण हुवै। ए रची सं १९१० जेठ बिद १४ बगतगढ़
१.दसवेआलियं,५/२/४५,४०
पन्द्रहवीं हाजरी : २६५