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७ अवनीत रा भाव सांभळी, घणो हरष पामे पर नार।
केइ भारीकर्मा उळटा पड़े, त्यां रे घट माहै घोर अंधार।। अथ अठे पिण अवनीत री संगति तजणी कही। तथा पैंताळीसा रा लिखत में कह्योटोळा माहे कदाच कर्म जोगे टोळा बारे पड़े तो साधु-साधवियां रा अंसमात्र अवगुण बोलण रा त्याग छै। यांरी अंसमात्र संका पडै आसता उतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। टोळा मांसूफारने साथे ले जावा रा त्याग छै। उ आवै तो ही ले जावा रा त्याग छै। टोळा मांहे न बारे नीकळ्यां ओगुण बोलण रा त्याग छै। मांहोमांहि मन फटे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। इम पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो। ते भणी सासण री गुणोत्कीर्तन रूप बात करणी। भागहीण हुवै सो उतरती बात करे। तथा भागहीण सुणे, सुणी आचार्य ने न कहे ते पिण भागहीण। तिण नै तीर्थंकर नो चोर कहणो। हरामखोर कहणो। तीन धिकार देणी।
आयरिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था विणं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं॥
आयरिए नाराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं।।
इति 'दशवेकालिक में कह्यो। ते मर्यादा आज्ञा आराध्यां इह भव पर भव सुख कल्याण हुवै।
ए हाजरी रची संवत् १९१० जेठ विद १४ वृहस्पति बगतगढ़े।
१. दसवेआलियं,५/२/४५,४०
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तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था