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________________ तो पिण अठीरा साध-साधव्यां री संका घालण रा त्याग छै। तथा गुणसठा रा लिखित में पिण इमहीज कह्यो-टोळा बारे नीकळी एक रात उपरंत सरधा रा खेत्रां में रहिवा रा त्याग छै। उपगरण टोळा माहे करे. परत पाना लिखे, जाचे ते साथे ले जावण रा त्याग छै। तथा चोतीसा रा लिखत में आर्यां ने मर्यादा बांधी तिण में कह्यो-गृहस्थ आगे टोळा रा साध-आल् री निंद्या करे तिण ने एक मास पांच विगै रा त्याग। जितरी वार करे जितरा मास पांचू विगै रा त्याग। तथा जिण आल् साथे मेल्यां तिण आर्यां भेळी रहे अथवा आर्यां माहोमांहि सेष काळ भेळी रहे अथवा चोमासों भेळो रहे त्यां रा दोष हुवे तो साधां सूं भेळा हुवां कहि देणो न कहे तो उतरो प्रायछित उण ने छै। तथा जिण आर्यां ने ओर आर्यां साथे मेल्यां ना न कहिणो साथे जाणो न जाए तो पांचू विगै खावा रा त्याग न जाए जितरा दिन। बले और प्राछित जठा वारे। एहवो कह्यो छै। तथा साधां रा मेलिया बिना आर्यां ओर री ओर आ· साथे जाए तो जितरा दिन रहे जितरा दिन पांचू विगै रा त्याग, बले भारी प्राछित जठा वारे। एहवो कह्यो। ___टोळा सूं छूट हुआ री बात माने त्यांने मूर्ख कहीजे। त्यां ने चोर कहीजे। सूंस करण ने त्यारी हुवे तो ही उत्तम जीव तो न माने। ए सर्व चोतीसा रा लिखत में कह्यो। तथा आगे पिण गण बारे नीकळी अवगुण बोल्या ते पिण मुंडा दीठा। वीरभाण टोळा बारे नीकळी अवगुण बोल्या तिण री पिण बिगड़ी। तथा चंदू वीरां फतू आदि टोळा बारे थइ जन्म बिगाड्यो। तथा बड़ो रूपचन्द चन्द्रभाण जी तिलोकचन्द जी आदि जे बेमुख हुआ त्यांरो जन्म सुधरयो नहीं ते भणी उत्तम जीव वैमुख री संगत न करे। तथा श्री भीखणजी स्वामी रास में अवनीत ने भांत-भांत करने ओळखायो ते गाथा मद विषय कषाय वस आत्मा, तिण सूं विनो कियो किम जाय। तिण री बणे खूराबी अति घणी, ते सुणजो चित ल्याय।। कोई गण में हुवे साध अहंकारी, तिण सूं थोड़ा में हुए जाये खुवारी। उण रा गुण कही पोगां चढावे, तो उ थोड़ा में फिलफुल थावे॥ ३ जो उण नै गुर गुरभाइ सरावे, तो मगज में पूरो न मावे। जब रहे टोळा में राजी, ठाला बादल ज्यूं करे ओगाजी॥ ४ इसड़ो अभिमानी दोष लगावे, तिण सूं आलोवणी नहीं आवे। इह लोक रो अर्थी मूढ बाल, सल सहित कर जाए काळ॥ ५ इसड़ा अभिमानी अवनीत, कदे चाले रीत कुरीत। तिण ने गुर नषेदे घणा मांय, तो उ गुर रो द्वेषी होय जाय॥ १. लय : विनै रा भाव सुण-सुण। २. प्रफुल्ल। बारहवीं हाजरी: २४७
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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