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अथ अठे पिण इम कह्यो-विनीत सुण-सुण हरषे,अवनीत रे धड़क पड़े, पोता ऊपर खांच लेवे। आगे पिण वीरभांण जी हुओ तिण विनीत अवनीत री चोपी भीखणजी स्वामी जोड़ी तिका तिण पोता ऊपर खेंची। साधां कने अनेक अवगुण बोल्या। फटावा रोउ पाय कीधो। तिण ने भीखणजी स्वामी अवनीत अजोग जांणने टोळा बारे कियो। ते विराधकपणे मूओ। जे कोइ इसड़ा लखण राखे तिण रा पिण एहवा इज हवाल हुवै तिण सूं थोड़ा वरस रे काजे अनंत सुख आत्मिक पुद्गलिक हारज्यो मती। भीखणजी स्वामी री मर्यादा सुद्ध पाळ्यां आराधक पद पावोला तिण कारण मर्यादा लोपजो मती।
व तथा पेंताळीसा रा लिखत में कह्यो-टोळा मांहे कदाच कर्म जोगे टोळा बारे परे तो टोळा रा साध-साधवियां रा अंस मात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। यां री अंस मात्र संका पड़े आसता उतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै टोळा मां सूफारने साथे ले जावा रा त्याग छै। उ आवे तो ही ले जावा रा त्याग छ। टोळा मांहे नै बारे नीकळ्या पिण अवगुण बोलण रा त्याग छै। मांहोमां मन फटे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। इम पेंताळीसा रा लिखत में कह्यो ते भणी सासण री गुणोत्कीर्तन रुप बात करणी। भागहीण हुवे सो उतरती बात करे, तथा भागहीण सुणे, सुणी आचार्य ने न कहे ते पिण भाग हीण, तिण ने तीर्थंकर नो चोर कहणो, हरामखोर कहिणो। तीन धिकार देणी।
आयरिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं।।
आयरिए नाराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं।।
'इति दशवइकालिक में कह्यो ते मर्यादा आराध्यां इहभव परभव में सुख कल्याण हुवे । ए हाजरी रची संवत् १९१० जेठ विद १० वार सोम बषतगढ़ मध्ये
१. दसवेआलियं,५/२/४५,४०
ग्यारहवीं हाजरी : २४५