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४ पांच पद विचे दे आया मांय, परतीत पूरी उपजाय ।
तिण रा साषी ग्रहस्थ छैहराय, तठा पछै लिया गण माय॥ टोळा रा साध साधवियां मांहि, किण रे प्राछित ठहरायो नांहि। किण ही प्राछित मूल न ळीधो,मिच्छामि दुक्कडं पिण नहीं दीधो॥ किण ही में न काढ्यो बंक, सगळा ने कर दीधा निसंक। प्राछित विण दीधा आया मांहि, सगळा ने सुध जांणी ताहि॥ यां री तरफ सू चोखा जाण, गुर रे पगा पड़िया आंण । जो ए दोष जाणे किण मांहि, तो ए आगो काढे जिसा नांहि॥ ज्यां ने असाध कह्या था मुख सूं, त्यां रा वांदया पग मस्तक सूं। त्यां ने प्राछित मळ न दीधो. उळटो आप प्राछित ओढ लीधो।। ज्यां ने पांचू व्रत कह्या भागा, त्यारेहीज पगां आय लागा।
ज्यां ने कह्या था लोका में खोटा,त्यां ने हीज लेखव लिया मोटा। १० ज्यां में काढ्या था अनेक दोष, ते तो कर दीया सगला फोक।
उळटो आपरे डंड ठेहराय, इण विध आया गण मांय ।। ११ ज्यां ने ढीळा कहता तांणतांण, बले भागळ कहिता जाण-जांण।
ज्यां री वंदणा देता छोड़ाय, त्यां रा हीज पोते बंदिया पाय॥ १२ ज्यां ने कहिता पेहले गुणठांण, त्यां रा ही पग वांदिया आंण।
अणाचारी कहता दिन रात, तिका पाछी न पूछी बात।। १३ ज्यां ने प्राछित कहिता आप, ते तो जाबक दियो उथाप।
उळटो आप' डंड कराय, गण मांहे पेठा छै आय। १४ कहितो थो मोमे दोष न पावे, मिच्छामिदुक्कडं पिण नहीं आवे।
तिण ने प्राछित देणो ठहराय, तठा पछै लियो गण मांय ।। १५ कहितो आलोवण करूं नाहि. आप छांदे रहिसं गण माहि।
तिण री आलोवण करणी थाप, ते प्राछित पिण ओढियो आप। १६ ज्यां में कहता कपट ने झूठ, पहिला निंद्या करता परपूठ।
त्यां ने उत्तम पुरुष ठहराय, प्राछित ओढ आया त्यां माय॥ १७ ज्यां ने खोटा सरधावण ताय कीधा था अनेक उपाय।
त्यां ने तिरण तारण ठहराय, प्राछित ओढ़ आया त्यां माय॥ १८ यां री करता था के इ ताण, त्यां रो गळ गयो सगळो माण।
यां री करता केइ पषपात, त्यांरी पिण बिगड़े गइ बात। १९ यां ने जाणता था केइ साचा, ते तो प्राछित ले हुवा काचा।
बले ताणे यांरी दूजीवार, तो ए पूरा मूढ गिंवार।।
ग्यारहवीं हाजरी : २४३