SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्यारहवीं हाजरी पांच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणा । ईर्ष्या भाषा एषणा में सावचेत रहणो। आहार पाणी लेणो पड़े ते पकी पूछा करने लेणो । सूजतो आहार पिण आगला रो अभिप्राय देखने लेणो । पूजतां परिठवतां सावधानपणे रहणो । मन वचन काया गुसि में सावचेत रहणो । तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड अराधणी । श्री भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देखने आचार श्रद्धा प्रकट कीधी - विरतधर्म ने अविरत अधर्म | आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारे अधर्म । असंजती रो जीवणो बंछे ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देवनो मार्ग छै । तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। तथा संवत् १८४१ रे वरस भीखणजी स्वामी मर्यादा बांधी तिण में कहयो- किण ही साधने दोष लागे तो धणी ने सताब सूं कहणो, पिण दोष भेळा करणा नहीं। तथा संवत् १८५० रा लिखत में कह्यो किण ही साध - साधवियां रा ओगुण बोल ने किणी ने फाड़ने मन भांग ने खोटा सरधावण रा त्याग छै । एहवा कह्यो तथा अनेक कारण उपने टोळा थी न्यारो पड़े तो किण ही साध - साधवियां रा ओगुण बोलण रा हुंतो तो खूंचों काढण रा त्याग छै। रहिसे-रहिसे लोकां रे संका घालने आसता उतारण रा त्याग छै, एहवो कह्यो । तथा किण ही साध आर्य्यां में दोष देखे तो ततकाळ धणी ने अथवा गुरां ने कहिणो पिण ओरां ने न कहिणो घणां दिन आड़ा घालने दोष बतावे तो प्राछित रो धणी उहिज छै । तथा टोळा मांहे भेद पारणो नहीं । मांहोमां जिलो बांधणो नहीं ! मिल-मिल ने टोळा सूं मन उचक्यो अथवा साधपणों पळे नहीं तो किण ही ने साथ ले जावण रा अनंता सिद्धां री साख करने पचखांण छै, एहवो कह्यो । तथा संवत् १८५२ रे वर्स आय रे मर्यादा बांधी तिण में कह्यो - किण ही साधसाधवी में दोष देखे तो दोष रा धणी आगे कहणो के गुरां आगे कहणो के गुरां आगे कहणो पिण ओर किण ही आगे कहणो नहीं । किण ही आर्य्या दोष जाणने सेव्यो हुवे ते पाना में लिखिया विनां विगै तरकारी खाणी नहीं | कदाच कारण पड्यां न लिखे तो ओर आर्य्यां ने कहणो। सायद करने पछे पिण वेगो लिखो । जिण रा परिणांम टोळां मां रहिण राहुवे ते रहिजो। पिण टोळा बारे हुआं पछे साध - साधव्यां रा अवगुण बोलण रा अनंता सिद्धां री साख करने त्यांग छै । बले करली - करली मरजादा बांधे त्या में पिण अनंता सिद्धां री साख करने ना कहिण रा त्याग छै । कोइ साध - साधवियां रा ओगुण काढ़े तो सांभळण रा त्याग छै । इतरो कहिणो- 'स्वामी जी ने कहिजो ' । तथा चोतीसारा लिखत में आर्य्या रे मरजादा बांधी तिण में कह्यो - टोळा रा साध आय री निंदा करे तिण ने घणो अजोग जाणणी, तिण रे एक मास पांचूं विगै रा त्याग, जितरी वार करे जितरा मास पांचू विगै रा त्याग, जिण आर्य्यां ने ओर आय सा ग्यारहवीं हाजरी : २४१
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy