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३२ उण री तो थारा कह्या सूं संक, पिण थे तो दोषीला निसंक । इम कही उण ने घालणो कूड़ो, घणा बेठां देणी मुख धूड़ो || ३३ ज्यूं कोइ बले न दूजी वार, किण रा दोष न ढांके लिगार । दोष ढांक्या सूं हुवे सुवारी, टांको झलै तो अनंत संसारी ॥ ३४ संका सहित न राखे मांय, ओर साधु दोषीला न थाय । दोषीला ने जाणी राखे मांय, तो सगला असाधु थाय ॥ ३५ इम कह्यां यां ने जाब न आवे, जब झूठी बात बणावे । यां रा दोष न कया म्हें तो डरते, गुर सूं पिण लाजां मरते ॥ ३६ रखे करदे मोने टोळा बारे, मुढ़े तो ओहिज डर रह्यो म्हारे । म्हे दोष सेव्यां यां रे कये जांण, यां सेव्यां री न करी तांण ॥ ३७ कदे हूं दे तो दोष बताय, जब मारी देता बात उड़ाय । मांहरी एकलां री आसंग न काय, तिण सूं रह्यो दोषीला मांय || ३८ हिवै तो हुआ म्हे दोय, दोष सेवण न दां. कोय । इसड़ी जोम री बातां बणांवे, मन मांने ज्यूं गोळा चलावै ॥ ३९ जब यां ने कहिणो एम, थांरो साधपणो रह्यो केम । थे तो डरता अकारज कीधो, तिणरो प्राछित पिण नहीं लीधो ॥ ४० कदा गुर काचो पाणी मंगावत, तो थे डरता थका भर ल्यावत । करावत पाप हर कोई, तो थे डरता करता सोइ ॥ ४१ कदा गुर पिण भारी पाप करता, तो ही भेळा रहिता डरता । भागळां मांहे रहता खूता, पिण एकला कदेय न हूंता ॥ ४२ इसड़ी थांरी गीदड़ाइ, थे इज थांरा मुख सूं बताइ । इसड़ा प्राक्रम थां मांहे नावे, थांरी आगा सूं परतीत ना आवे || ४३ साधां ने डरतो मूल न रहणो, दोष देखे सताब सूं कहणो । डरता न कया तो गीदड़ पूरा, हिवै किण विध होस्यो सूरा || ४४ एकला होयवा स्यूं डरते, दोष न कह्या थे लाजा मरते । जो हिवै ढाकोला दोष अनेक, जांणे होय जावाला एक एक ॥। ४५ हिवै थां दोयां रे मांय, कोइ दोष दे अनेक लगाय । तो पिण चावा' न करो लाजा मरता, एकला होण सूं बले डरता ॥ ४६ एकला होण सूं डरो दोइ, मांहोमां देसो दोष लकोइ । या देख लीधी थांरी रीत, हिवै जाबक नावै परतीत ॥
१. झूठ । अहंकार ।
२. प्रगट ।
दसवीं हाजरी : २३९