________________
सातवीं हाजरी
पांच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखण्ड आराधणा। ईर्ष्या, भाषा, एषणा में सावचेत रहिणो। आहार पाणी लेणो ते पकी पूछा करी ने लेणो। सूजतो आहार पिण आगळा रो अभिप्राय देखने लेणो। पूंजतां परिठवतां सावधान पणे रहणो। मन वच काया गुप्ति में सावचेत रहिणो, पंच महाव्रत सुद्ध पाळणा। तीर्थंकर नी आज्ञा अखण्ड आराधणी। भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धांत देखने आचार श्रद्धा प्रगट कीधा-विरत धर्म ने अविरत अधर्म, आज्ञा मांहे धर्म आज्ञा बारे अधर्म, असंजती रो जीवणो बंछे ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग नो मार्ग छै। तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी।
संवत् १८४५ सा रे वर्ष भीखणजी स्वामी मर्यादा बांधी- “किण ही रो सभाव अजोग हुवे, तिण ने कोई टोळा मांहे बेठणवाळो नहीं, जद पेला ने घणी प्रतीत उपजावे घणी नरमाइ करने हाथ जोड़ने कहिणो-थे मोने निभावो, यूं कहिने साथ जाणो, आगलो चलावे ज्यूं चालणो, जको काम भळावे ते करणो, उण ने घणो रीझाय ने रहिणो, जो अतरी आसंग विनो नरमाई करण री न हवे तो संलेषणां मंडणो, वेगो कारज सुधारणो। जो दोयां बोल माहिलो एक बोल पिण आरे न हुवे तो उण सूं कळेश कर २ ने कुण जमारो काढ़सी।
उण ने साधु किम जाणीये जो एकलो वेण री सरधा हुवे इसड़ी सरधा धारने टोळा मांहे बेठो रहे माहरी इच्छा आवसी जद तो मांहे रहितूं मारी इच्छा आवसी जद एकलो हुसूं इसड़ी सरधा सूं टोळा मांहे रहे ते तो निश्चै असाध छै, साधपणो सरधे तो पहला गणठाणां रो धणी छै। दगाबाजी ठागा सं माहे रहे छै तिण ने माहे राखे जाणने तिण में पिण महादोष छै। कदा टोळा मांहे दोष जाणे तो टोळा मांहे रहणों नहीं, एकलो होयने संलेषणा करणी, वेगो आत्मा रो सुधारो हुवे ज्यूं करणो। आ सरधा हुवे तो टोळा मांहे राखणो। गाळागोळो करने रहे तो राखणों नहीं, उत्तर देणो, बारे काढ़ देणो, पछेइ आल दे निकले ते किसा. काम रो। टोळा मांहे पिण साधां रा मन भांगने आपरे जिले करे ते तो महाभारीकर्मों जाणवो। विसवासघाती जाणवो। इसड़ी घात-पावड़ी करे ते तो अनन्त संसार नी साई छै, इण मर्यादा प्रमाणे चालणी ना वै तिण ने संलेखणां मंडणो सिरे छै, धने अणगार तो नव मास माहे आतमा रो किळ्यांण कीधो ज्यूं इण ने पिण आत्मा रो सुधारो करणो, पिण अप्रतीतकारियो काम न करणो। रोगिया विचै तो सभाव रा अजोग ने मांहे राख्यो भंडो छै–“ए सर्व पेंताळीसा रा लिखत में कह्यो।
२२०
तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था