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१९ ज्यूं नकटो नकटा हुवा चावै, असुभ उदै माठी मति आवै।
ज्यूं थे डूबता दोसीला मांही, ज्यूं औरां नै डबोवता ताही।। २० औरां सूं करता एहवो उपगार, थारा भणिया रो ओहिज सार।
इसडो कूड़ कपट थे चलायो, थारो छूटको किण विध थायो। २१ थे तो जिन मारग में हुवा ठगो, थे दियो घणा नै दगो।
ठग-ठग खाधा लोकां रा माल, थारो होसी कवण हवाल।। २२ आछी वस्तु हुंती घर मांही, आहार पाणी कपड़ादिक ताहि।
थांनै गुरु जाण हरष सूं देता, सो थारा रो निकळ गया पेंता॥ २३ म्हे थांने वांदता वारुंवार, जद म्हांनै हुतो हरष अपार।
थांने जाणता सुद्ध आचारी, थे छानै रह्या अनाचारी।। २४ म्हे थांने जाणता था पुरुष मोटा, पिण थे तो निकळ गया खोटा।
म्हे थांनै जाणता उत्तम साधू, थे तो होय नवरिया असाधू ।। २५ थे जाण रह्या दोषीला मायो, ठागा सूं थे काम चलायो।
थे जीतब जन्म बिगाड्यो, नर नो भव निरथक हास्यो ।। २६ थे घणा दिना रा कहो छो दोष, थारी बात दीसै छै फोक' ।
साच झूठ तो केवळी जाणै, छद्मस्थ तो प्रतीत नाणै ।। २७ थे हेत मांहीं तो दोष ढंक्यां, हेत तूटै कहिता नहिं संक्या।
थांरी किम आवै परतीत, थानै जाण लिया विपरीत ।। .२८ थे दोषिला सूं कियो आहार, जद पिण नहीं डरिया लिगार।
तो हिवै आळ देता किम डरसी, थारी परतीत मूरख करसी॥ २९ ए थे दोष क्यानं किया भेळा, ए थे क्यूं न कह्या तिण वेळा।
थांमै साध तणी रीत है तो, जिण दिनरो जिण दिन कहितो॥ ३० थे दोषिला सूं कियो संभोग, थारा वरत्या माठा जोग।
थारी परतीत न आवै म्हांनै, यारा दोष राख्या थे छान।। ३१ थे तो कीधो अकारज मोटो, जिन मारग में चलायो खोटो।
थांरी भिष्ट हुई मति बुद्ध, हिवे प्रायछित ले होय सुद्ध। १.तथ्यहीन। १८८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था