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ढाळ ८
'भिक्षु ए मर्यादा बांधी, अष्टादश गुणसवै जी ॥धुपदं॥ १ सहू संत सत्यां में भारीमाल री, आज्ञा मांहि रैणो जी।
तसु आज्ञा थी विहार चउमासो, ए भिक्षु ना वेणो जी काई।। आज्ञा विना कठे नहिं रहिणो, बलि भारीमाल रे नामो। शिष्य शिष्यणी करणा चरण देइ ने, आण सूपणा तामो॥ भारीमाल री इच्छा हुवै जद, गुरु भाई ने तामो। वा चेला ने भार टोळा नो, आपे अति अभिरामो॥ जद सगळा संत संत्यां ने उण री, आज्ञा मांहे रहिणो। एहवी रीत पंरपर बांधी, ए भिक्षु ना वेणो॥ सगळा संत सत्यां ने रहिणो-एकण री आज्ञा मांयो। साधु साधव्यां रो मारग चाले, जठे तांइ सुखदायो। अशुभ उदय गण थी कोइ, निकळे एक दोय त्रिण आदो।
बहु धुर्ताइ करे बुगल-ध्यानी हुवै, तसु गिणवा नहीं साधो॥ ७ तसु चिहुं तीर्थ में नही गिणवा, ते निंदक चिहुं तीर्थं नां।
तेह ने वंदे ते पिण श्री जिन-आज्ञा बार प्रपन्ना।। ८. साधां भणी असाधु श्रद्धायवा, फेर दीक्षा ले कोइ।
तो पिण तेह ने मुनि न श्रद्धवू, ए भिक्षु वच जोइ।। उण ने छेड़विया ओ देवे, और साधां शिर आळो।
उण तो अनंत संसार ने आरे, कीधो दीसै बालो। १० कदा कर्म धको दीधा टोळा सूं, निकळे जेह अयाणो।
तो उण रे गण रा संत सत्यां रा, अवगुण बोलण रा पचखांणो।। ११ अंश मात्र हूंता अणहूंता, अवगुण बोलण रा जाणो।
अनंत सिद्धां री आण छै तिण ने, बलि पांच पदा री आणो॥ १२ पांचू पद नी साख थकी, पचखांण तास पहिछाणो।
किण ही संत सत्यां री शंक पड़े ज्यूं, बोलण रा पचखांणो॥ १३ कदा ओ विटळ होय सूंस भांगे तो, हळुकर्मी न माने तायो।
उण सरीखो कोई विटळ मानें तो, लेखां में न गिणायो॥
१. लय-इण स्वार्थ सिद्ध रै चंद्रवै । १७८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था