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संगठन की दृष्टि से सुदृढ़ संविधान आचार्य भिक्षु की अलौकिक देन है। यह संविधान उन्होंने उस वातावरण में दिया था जब सम-समायिक सम्प्रदायों में एक ही संघ में अनेक आचार्य हो जाते थे और आचार्य के अधीनस्थ साधु भी अपने अलग-अलग शिष्य बनाते थे, वैसी स्थिति में चालू प्रवाह को मोड़ देकर उन्होंने जो कार्य किया, वह इतिहास में अन्यत्र दुर्लभ है। छोटे से समूह में प्रारंभ किया हुआ वह प्रयोग आज लगभग ७०० साधु-साध्वियों में भी उसी प्रकार चल रहा है।
उस प्रयोग के विभिन्न बिन्दुओं से परिचित होने के लिए यह पुस्तक एक आदर्श का काम करेगी।