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ढाळ ४
'स्वाम, सुखकारी जी, तीर्थ सिणगारी जी। हो जी म्हारा भिक्षु ने भारीमाल तणी वर जोड़ी जी,
धर्म ना धोरी जी ॥ध्रुपदं॥ भिक्षु भाणज भरत में, कांई अवतरिया इण आर।
मर्यादा बांधी भली, कांइ लिखत विषे सुविचार।। ___ वर मर्यादा . चरम, गुणसठे गुणरास।
चारू मर्यादा चरम, गुणसठे गुणरास ।। भारीमाल आज्ञा थकी, शेषकाळ चउमास। आज्ञा विन रहिणो नही, किण ही स्थानक तास ।। शिष्य शिष्यणी करणा सही, भारीमाल रे नाम। चरण देइ ने सूंपणा, गुणी संत गुण धाम॥ भारीमाल इच्छा थकी, थापे पद युवराज। रहिणो तसु आज्ञा मझे, ए रीत पंरपर साज।। कर्म योग गण सूं टळे, एक दोय ने तीन। तसु साधु नही श्रद्धणो, निंदक तेह मळीन ।। हूंता अणहूंता बलि, अवर्ण वाद पिछाण। अनंत सिद्धा साखे करी, बोलण रा पचखांण।। गण मांहि जाचे लिखे, वस्त्र पानादिक जाण। साथे लेजावण तणां, जावजीव पचखांण।। श्रद्धा रा क्षेत्रां मझे, एक रात्रि उपरंत।
रहिवा रा पचखाण छै, ए भिक्षु वच तंत ।। १० संवत अठारे गुणसठे, महा सुदि सातम सार।
ए मर्यादा स्वामीजी, बांधी अधिक उदार।। ११ तेह लिखत नी जोड़ ए, उगणीसै तेबीस।
माघ शुक्ल छठ तिथि करी, जयजश हर्ष जगीस।
१. लय-पायल वाली पदमणी
१७२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था