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________________ ढाळ २ 0 9 भिक्षु भज ले रे धर भाव ॥धुपदं ।। १ अष्टादश सोळे वर्षांते, ते भाव चरण मुनि लीध। धुर मर्यादा बत्तीसे बांधी, चरम गुणसठै सिद्ध। भारीमाल प्रमुख गणपति ने, नामे देणी दीख। सेखे काळ चौमासो आज्ञा थी, ए भिक्षु नी सीख। गणि इच्छा सूं पद युवराज आपे, तसु आंण प्रमाण। एक तणी आज्ञा में रहिणो, ए रीत पंरपर जाण। ___कर्म योगे एक दोय प्रमुख, टळियां तीर्थ में नाहि। तेहनें वांदे पूजे ते पिण, नही जिन आज्ञा मांहि ।। कर्म योग गण सूं निसरिया, अवगुण बोलण रा पचखांण। पांच पदां री आण तास है, बलि अनंत सिद्धां री आण।। ____ कदा विटळ थई सूंस भांगे, ओ हळुकर्मी माने नाय। कोई विटळ उण सरीखो माने, तो लेखां में न गिणाय ।। गण में लिखिया जाच्या उपधि, लेई जाणा नहीं जाण । क्षेत्रां मांहि इक निशि उपरंते , रहिवा रा पचखांण।। गुणसठे महा सुदि सातम दिन, बांधी ए मरयाद । अष्टादश साठे भाद्रवे अणसण, करी लही समाध॥ भारीमाल पट अधिक ओजागर, भद्र प्रकृति गुण खान । अठंतरे अणसण कर महा विद, अष्टम कियो प्रयाण ।। पट तीजे ऋषिराय जंबू जिम, प्रबल दशा पुन्यवान। उगणीशै आठे महाविद चवदश, तिथी कियो कल्याण॥ ११ चोथा आरा जिसा आचार्य, ए प्रगट थया इण आर। अतिशयधारी अधिक ओजागर, शासण नां सिणगार ।। १२ तास प्रसादे लही संपदा, च्यार तीर्थ सुखकार। गण वृद्धि समृद्ध सुख संपति वर, जयजश हर्ष अपार।। १३ स्वाम चरम मर्यादा गणि पट, महोत्सव मंगळमाळ। उगणीसै इकवीसै जोड़ी, जयजश हर्ष विशाल॥ १. लय-सीता आवै रे धर राग। ३. प्रथम। २. आषाढ़ पूर्णिमा। ४. अंतिम १६८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था 0
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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