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दूजौ साधु कहै-इण रीत उपरंत दीयौ, तो डंड मण्डल्या ७ देणा। अनै जौ कारणीक नैं समचा रौ आहार देवण वाळौ और साहज्य वाळा साधां नै पूछ नैं देवै तो देण वाला रे मंडल्या नहीं, भीखनजी स्वामी पैंताळीसा रा लिखत में कह्यौ। ते भणी बीजा साहज्य वाळां नै पूछ नै रीत प्रमाणे देवै तौ मंडल्या नहीं संवत् १९११ चैत सुदि ५।
(हिन्दी अनुवाद)
दूसरा साधु कहै-इसने व्यवस्था उपरान्त दिया है तो भी देने वाळे प्रायश्चित्त मंडळिया ७ अगर रुग्ण को समुच्चय का आहार देने वाला अन्य साझ वाले साधुओं को पूछ कर दे तो उसे प्रायश्चित्त नहीं ! "आचार्य भिक्षु ने १८४५ के लिखित में रोगी के आहार की व्यवस्था के संबंध में कहा है-सब साधु सम्मिलित होकर दे तो लेना" इसलिए दूसरे साझ वालों को पूछकर विधिपूर्वक दे तो प्रायश्चित्त नहीं!
(संवत् १९११ चैत्र शुक्ला ४)
१६४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था