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ढाळ ५
'पुन्यवान पुरुष नै, घर हुवै बहुळो धन्न। तो पात्रे वावरे, कुपात्र न जाणे पुन्न। जो तेल घणो तो, बेळू मांहि न ढोले। बहु बीज हुवै तो, उषर में न झकोळे । घणो स्वर्ण हुवै तो, सांकळ केम करावै। बहु दूध हुवै तो, सर्प भणी किम पावै॥ घणा गजेन्द्र हुवै तो, भार अर्थ स्यूं वावै। तिम धन बहु है तो, किम कुपात्र पोखावै॥ मृगालोढ़ा ने देखी, गोयम पूछ्यो ज्ञान। इण पूर्व भव में, स्यूं दीयो कुपात्र दान । बलि कुमार सुबाहु, देखी पूछ्यो ताम। कुण दान सुपात्र, दीधो तसुं फळ पाम।। ए प्रश्न दोई, सूत्र विपाक मझार। समदृष्टि जाणे, उत्तम न्याय उदार।। दान असंजति ने, सचित्त अचित्त दियां पाप। पंचम अंग पेखो, अष्टम शतक आलाप॥ उगणीशै तेरे, फाल्गुन सुदि ग्यारस भृगुवार। फळ दान दिखाया, जयजश गणपति सार ।।
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१. लय-नमूं अनंत चौबीसी......
१४२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था