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छंद कुंडलिया
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सेवो थानक . सुध' कथा म करो रस कामण। · त्रिय संग आसण तजोरे भरी दृग् निरख म भामण । वस मति अन्तरवास जिहां त्रिय शब्द सुणीजै। कृत क्रीड़ा म संभार सरस रस चित्त न दीजै। प्रमाण लोप अधिको अदन, उद्भट वेष म आदरो। तज शब्द रूप रस गंध फ र्श, धीरज स्यूं ए व्रत धरो।।
१४० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था