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ढाळ २९
'सुणज्यो शीख सतगुरु तणी रे॥ध्रुपदं॥
मोटा कुळ रा मानवी रे, ऊंडो करै विचार।
सुरगिरि धर्म हिये धरी रे, नाणै आर्त लिगार। __ अदेखाई न करै और नी, ते पिण निज थी बहू हीन।
सूर खद्योत नो अरि किम हुवै, वो बेचारो दीन॥ किहां सर्सप किहां सुरगिरी, किहां हीरो पुखराज। किहां चंदन एरंडियो, रोष करै किण काज॥ किहां आम किहां आंबली२, अंतर अधिक अपार ।
आम अदेखाई किम करै, आंबली सूं अवधार।। इन्द्र-वाहन न करै इसको, देखी मनुष्य लोक ना गजराज। ऊंच करै ए आलोचना, रोष करतांइ आवै लाज॥ धीरपणों चित्त में धरै, सुखदाई सुवनीत। हितबंछक सतगुरु तणो, पूरण पाळे प्रीत॥ तन मन सुख हुवै गुरु भणी, तेहिज करै उपाय। लहर वैर सर्व परहरै, साताकारी सवाय॥ आपन तपै न तपावै औरनै, आछा माणस ताम। गुणवंत गहर समुद्र सा, एहवो न करै काम। वारू विनय विवेक में, भीज रह्या निश दिन्न । त्यारे दिन-दिन तीखी आशता, ते सदा रहै सुप्रसन्न ।।
१. लय-कामणगारो छै रे। २. इमली
३. ऐरावत हाथी
१२८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था