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सासण , वीर तणों भिक्षु गण, भाग्य प्रमाणे मिलियो। विनयवंत सुख माने अधिको, रहेज फूल्यो फळियो॥ सासण वीर तणों तिण में, अविनीत हरष नहीं पावै । रंग रत्ता नही छै तिण कारण, हीजरता दिन जावै॥ अल्पकाळ बहुकाळ तणी, गणपति मर्यादा बांधै। विनयवंत मन माही हरखै, समभावै चित साधै। तेहिज मर्यादा सुण-सुण, अविनीत घणों सीदावै।
जाणै मुज ऊपर ए बांधी, कळुष भाव मन ल्यावै॥ विनयवंत अविनीत तणां, लक्षण गणपति ओळखावै। विनयवंत सुण-सुण ने हरखै, भली भावना भावै।। विनयवंत अवनीत तणां, लक्षण सुण नैं अविनीतो। अति दुख पावै मन सीदावै, खोटी तिण री रीतो।। वंदणां करतां पिण सुवनीत तणे, मन हरष सवायो । ओच्छाह रहित अविनीत करै, अति कलुषभाव मन ल्यायो। उगणीसै बीसै चउमासै, चूरू वर उपगारो। जयजश गणपति जोड़ करी ए, समझावण नर नारो॥
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१२४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था