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________________ ४१ बहु बार त्रिण मास तणों, दोषण सेवी में तायो। कपट रहित आलोयां तिण ने तीन मास दंड थायो॥ ४२ बहु बार त्रिण मास तणों, दोषण सेवी ने तायो। कपट सहित आलोयां तिण नें, च्यार मास दंड आयो॥ ४३ . बहु बार चिहुं मास तणों, दोषण सेवी ने तायो। कपट रहित आलोयां तिण नें, च्यार मास दंड पायो। बहु बार चिहुं मास तणों, दोषण सेवी ने तायो। कपट सहित आलोयां तिण नें, पंच मास दंड आयो। ' बहु बार पंच मास तणों, दोषण सेवी ने तायो। कपट रहित आलोयां तिण नें, पंच मास दंड पायो। बहु बार पंच मास तणों, दोषण सेवी ने तायो। कपट सहित आलोयां तिणनें, छ मासी दंड आयो।। तिण उपरंत दोष जे सेवी, कपट सहित आलोयो। अथवा कपट रहित आलोयां, छ मासी दंड होयो रे ॥ ४८ प्रथम उद्देशै सूत्र व्यवहारे, आख्यो ए अविरुद्धो । समचित सेती जिन वच सरध्यां, समकित हुवै सुद्धो।। दोष सेव मन मांहि विचारे, आलोविस अंतकाळो। अंतकाळ आलोयां आराधक, सूत्र भगवती' न्हाळो । तिमज झूठ जे अंतकाळ पिण, आलोयां सुद्ध थावै। नहीं आलोयां उण नें मुसकल, बीजां रो स्यूं जावै ॥ मास छमास दोष बहुबारे, सेव्या प्राछित भाख्या । मासिक चउमासिक ना कारज, सूत्र नसीते · दाख्या ।। __ इत्यादिक जिन वच अवलोकी, मेटै भर्म सुजाणो। गणपति तणी आसता राखी, तजै ज मन री ताणो ।। समकित चारित्र बिहुं विराध्यां, इहभव अपजस होवे। परभव नरक निगोदे वासो, दो, जनम बिगौवे॥ ५४ शासण री उतरती न करे, ए भिक्षु मर्यादो। ते सुध पाळ सुजस उजवाळे, उभय भवे अहलादो॥ ५५ सासण में रही लहर रूप जे, वदै उतरतो बोलो। ते तो विवेक तणों विकळ छै, कहिये फूटो ढोलो॥ १. भगवई २०६८३,८७ १२२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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