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________________ जिनमूर्ति को नमस्कार करते समय श्री जिनेश्वर भगवान का भाव लाकर नमस्कार किया जाता है अतः दोनों भिन्न नहीं कहे जाते। जैसे यहाँ बैठे महाविदेहक्षेत्र में विराजमान श्री सीमन्धर स्वामी को सभी जैन वन्दननमस्कार करते हैं, तब राह में लाखों घर, वृक्ष, पर्वत आदि अनेक वस्तुएँ बीच में आती हैं तो नमस्कार उन वस्तुओं को हुआ या श्री सीमधर स्वामी को? यदि कहोगे कि नमस्कार करने का भाव भगवान को होने से भगवान को ही नमस्कार हुआ, अन्य वस्तु को नहीं; तथा केवलज्ञान से भगवान भी उस वन्दना को इसी रीति से जानते हैं, उसी तरह मूर्ति द्वारा भी भगवान का भाव लाकर वन्दन-पूजन करने में आए तो उसे क्या भगवान नहीं जानते? । इसी तरह साधु को वन्दन-नमस्कार करते हुए भी उनके शरीर को वन्दन होता है या उनके जीवन को? यदि शरीर को नमस्कार किया जाता हो तो जीव तो शरीर से पृथक् वस्तु है और जो जीव को नमस्कार करने में आता हो तो बीच में काया का अवरोध उपस्थित है और काया जीव से भिन्न पुद्गल द्रव्य है। __यदि कहोगे कि यह पुदगलद्रव्य साधु का ही है तो फिर मूर्ति भी देवाधिदेव श्री वीतराग प्रभु की है, ऐसा क्यों नहीं सोच सकते हो? मुनि की काया को वन्दन करने से जैसे मुनि को वन्दन होता है वैसे ही श्री वीतराग प्रभु की मूर्ति को वन्दन करने से साक्षात् श्री वीतराग प्रभु को ही वन्दन होता है। प्रश्न 8 - निराकार भगवान की उपासना ध्यान द्वारा ही सकती है तो फिर मूर्तिपूजा मानने का क्या कारण? उत्तर - मनुष्य के मन में यह ताकत नहीं कि वह निराकार का ध्यान कर सके। इन्द्रियों से ग्राह्य वस्तुओं का विचार मन कर सकता है। उसके अतिरिक्त वस्तुओं की कल्पना मन में नहीं आ सकती। __जो-जो रंग देखने में आते है, जिन-जिन वस्तुओं का स्वाद लिया जाता है. जिन-जिन वस्तुओं का स्पर्श किया जाता है, जो गथ सूंघने में आती है अथवा जो शब्द सुनने में आते हैं, उतने तक का ही विचार मन कर सकता है, उनके अतिरिक्त रंग, रूप अथवा गन्ध आदि का ध्यान, स्मरण अथवा कल्पना करना मनुष्य की शक्ति के बाहर की बात है। यदि किसी ने 'पूर्णचन्द्र' नाम के व्यक्ति का केवल नाम सुना हो, उसे आँखो से देखा भी न हो और न कभी उसका चित्र देखा हो तो क्या नाम मात्र से 'पूर्णचन्द्र' नाम के व्यक्ति का ध्यान आ सकता है? नहीं। उसी प्रकार भगवान को साक्षात् अथवा मूर्ति द्वारा जिसने देखा नहीं हो, वह उनका ध्यान किस प्रकार कर सकता है? जब-जब ध्यान करना होता है तब-तब कोई-न-कोई वस्तु नजर सम्मुख रखनी ही होती है। भगवान को ज्योतिस्वरूप मान कर उनका ध्यान करने वाला उस ज्योति को श्वेत, -76
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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