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11 आपके सवाल हमारे जवाब
(तात्त्विक - तार्किक - शास्त्रीय और बुद्धिगम्य प्रश्नों के उत्तर)
प्रश्न 1 - श्री का चित्र साधु को नहीं देखना चाहिए, ऐसा फरमान किस सूत्र में है?
उत्तर - श्रुतकेवली आचार्य भगवान श्रीमद् शय्यंभवसूरि महाराजा द्वारा रचित श्री दशवैकालिक सूत्र के आठवें अध्याय में फरमाया है कि.
जिसमें स्त्री की मूर्ति हो ऐसी चित्र वाली दीवार को नहीं देखना तथा अलंकारयुक्त अथवा अलंकाररहित स्त्री को भी नहीं देखना। अचानक दृष्टिपात हो जाय तो सूर्य को देखकर जिस प्रकार दृष्टि नीची कर ली जाती है, उसी प्रकार दृष्टि नीची कर लेनी चाहिए। स्त्री का चित्र देखकर मोह उत्पन्न होता है। इसलिए उसका जिस प्रकार निषेध किया गया है, उसी प्रकार वीतराग परमात्मा की प्रतिमा के दर्शन से वीतराग दशा का साक्षात्कार होता है; अतः वीतराग अवस्था की प्राप्ति के अभिलाषी को भी वीतराग परमात्मा के सदैव दर्शन आदि करने की आवश्यकता बतलाई गई है।
प्रश्न 2 - बी की मूर्ति देखकर प्रत्येक को काम-विकार उत्पन्न होता दिखाई देता है, परन्तु प्रतिमा को देखकर वैराग्यभाय सभी को उत्पन्न होता हो, ऐसा तो दिखाई नहीं देता है, इसका क्या कारण है?
उत्तर - जिनको प्रतिमा पर द्वेष अथवा दुर्भाव है उनको वीतराग की मूर्ति देखने पर भी शुभभाव प्रकट होना कठिन है परन्तु जो लघुकर्मी जीव हैं उनको तो श्री वीतरागदेव की शान्त मुद्रा के दर्शन के साथ ही रोम-रोम में प्रेम उमड़े बिना नहीं रहता। मुनि की शान्त मूर्ति को देखकर भी किसी पापी आत्मा के मन में जिस प्रकार भक्तिभाव उत्पन्न नहीं होता है, वैसे ही जिसको मूर्ति के प्रति द्वेष या दुर्भाव होता है, ऐसी आत्मा को मूर्ति के दर्शन से भी भक्तिभाव उत्पन्न नहीं हो, यह स्वाभाविक है। जगत् का सामान्य नियम तो ऐसा है कि गुणवान की मूर्ति देखकर उनके जैसे गुणों को प्राप्त करने की उत्कण्ठा हुए बिना नहीं रहती, पर उसमें भी अपवाद होते है।
श्री आचारांग सूत्र में फरमाया है कि - "जे आसया ते परिसया, जे परिसवा ते आसया।"
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