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स्थापना के लिए है उसी प्रकार भाव-अवस्था की भक्ति के लिए भी है। भाव-अवस्था की भक्ति करने वाले सभी हृदय से व सच्चे भाव से करते हैं - ऐसी बात नहीं है। देखा-देखी, लोभ, लालच, माया अथवा अन्य कुबुद्धि के वश होकर भी भक्ति करने वाले होते हैं। यही बात स्थापना के लिए भी सम्भव है परन्तु भावावस्था की भक्ति करने वालों की तरह कई ढोंगी और पाखंडी भी होते हैं - इससे सभी वैसे हो जाते हैं, ऐसा तो कोई भी नहीं कह सकता। इसी तरह स्थापना की भक्ति करने वालों में भी कई झूठे होते हैं, पर इससे सभी वैसे हो जाते हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता।
इस प्रकार आराध्य की अनुपस्थिति में उनके आदर से होने वाली फल-प्राप्ति के लिए स्थिर एवं शुद्ध भक्ति की आवश्यकता है। भक्ति की यह स्थिरता और शुद्धता आराधक को अत्यन्त शुभ फल देने वाली होती है, यह निर्विवाद है।
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