________________
||| श्री जिन-पूजन महिमा ।।
सथं पमजणे पुग्नं, सहस्सं च विलेवणे ।
सथसहस्सिया माला, अनन्तं गीथवाथए ||१|| इस पुस्तक के प्रथम प्रकरण का लेखन प्रारम्भ करते समय आगे के पृष्ठ पर 'श्री जिन-दर्शन महिमा' सूचक पद्य प्रस्तुत किया है। उसमें श्री जिनमन्दिर में प्रभु के दर्शन करने से एक मासोपवास का व्यावहारिक फल बताया है। उसके अनुसन्धान में यह पद्य बताता है कि -
प्रभुदर्शन के फल की अपेक्षा श्री जिनबिम्ब का प्रमार्जन करने से सौ-गुना फल मिलता है। श्री जिनबिम्ब के विलेपन से हजार गुना फल मिलता है, श्री जिनबिम्ब को सुवासित पुष्पों की माला पहनाने से लाख गुना फल मिलता है और श्री जिनबिम्ब के सम्मुख नृत्यादि द्वारा भाव भक्ति करने से अनन्त-गुना फल मिलता है।
जिनवर बिम्ब ने पूजतां, होय शतगणुं पुण्य । सहसगणुं फल चन्दने, जे लेपे ते धन्य ॥1॥
लाख गणुं फल कुसुमनी, माला पहिरावे । अनन्तगणुं फल तेहथी, गीत-गान करावे ॥2॥
तीर्थंकर पदवी वरे, जिन पूजा थी जीव । प्रीति भक्तिपणे करी, स्थिरतापणे अतीव ॥3॥
जिन पडिमा जिन सारिखी, सिद्धान्ते भाखी। निक्षेपा सहु सारिखा, थापना तिम दाखी ॥4॥
त्रणकाल त्रिभुवन मांही, करे ते पूजन नेह । दरिशन केरूँ बीज छे, एहमां नहिं सन्देह ॥5॥
ज्ञानविमल तेहने, होय सदा सुप्रसन्न । एहीज जीवित फल जाणीजे, तेहीज भविजनधन्न ॥6॥
- श्री ज्ञानविमल सूरि
-196