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है। ऐसे एक गहन, अत्यंत उपयोगी और सब का ही एकान्त कल्याण करने वाले विषय पर जितना अधिक विचार किया जावे और उसके लाभ ढूंढ़ने के लिए जितनी अधिक सूक्ष्म गति दौड़ाई जावे, उतनी कम ही है। ___ प्रस्तुत ग्रन्थ में जो कुछ विचारणा की गई है, वह आज तक प्रकाशित हुए शास्त्रानुसारी साहित्य को ध्यान में रखकर ही की गई है। प्रतिमा-पूजन यह साधुओं और गृहस्थी दोनों के लिए सामान्य और नित्य-धर्म है। इस नित्य-धर्म में जितनी श्रद्धा और समझ की शुद्धि और वृद्धि होती रहे, उतनी शुद्धि करने की आज के युग में अत्यन्त आवश्यकता है।
वर्तमान समय में धर्म के विषय में बहुत कम विचार किया जाता है। बहुत कम ऐसे प्राणी दृष्टिगोचर होते हैं, जो धर्म के विषय में गहरे उतरने का प्रयास करते हों। ऐसी स्थिति में धर्म के नाम पर गलत बातें जीवन में आ जाती हैं और सही बातें चली जाती हैं, यह सहज-स्वाभाविक है। श्री जिनप्रतिमा-पूजन एक सर्वोत्तम धर्मानुष्ठान है। इस कोटि का धर्मानुष्ठान और कोई अन्य हो, यह त्रिभुवन में भी असम्भवित हैं। उसके सम्मुख अज्ञानता, पूर्वाग्रह, कुशिक्षण, जड़वाद, उपेक्षा और धर्म-अवगणना आदि अनेक अनिष्टकारी बातें मुँह खोले खड़ी हैं। इन सब से स्वयं बचने और दूसरों को बचाने के लिए तैयार होने की जरूरत है। ऐसे समय में श्री जिनप्रतिमा-पूजन की श्रेष्ठता सिद्ध करने वाला यही नहीं किन्तु अनेक प्रकार का साहित्य प्रकाशित करने की आवश्यकता है। इस कार्य का एक अंश भी इस पुस्तक द्वारी पूरा हो, तब भी यह प्रयास सफल हुआ समझा जायेगा।
इस पुस्तक में दी गई प्रश्नोत्तरी आज से बहुत वर्ष पहले प्रकाशित 'मूर्ति-मण्डनप्रश्नोत्तर' नामक ग्रन्थ के आधार पर तैयार की गई है। इसमें जो कमी रह गई हो, तो उसके लिए 'मिच्छा मि दुक्कडं' देने के साथ, पाठकों को वे कमियाँ गीतार्थ गुरुओं के पास से सुधार लेने की खास सूचना है।
करमचन्द जैन हॉल, अन्धेरी : सं. 1997-पौष सुद 8 ता. 6-1-1941
मुनि भदंकरविजय