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उपदेश-प्रासाद - भाग १ धिक्कार हो, धिक्कार हो इस प्रकार से नगरवासियों के आगे उद्घोषणा कर निश्चल व्रत को ग्रहण किया । एक ही व्रत से उसने देवत्व प्राप्त किया । आज भी भर्तृहरि द्वारा कृत वैराग्य, नीति, शृंगारात्मक तीन शतकोंवाली पुस्तक लोक में प्रसिद्ध है । उनके मध्य में बहुत परमार्थ
हैं।
स्त्रियों की विचेष्टाओं को देखकर कौन विरक्त चित्तवाले नहीं होते है ? अपने अमर फल को देखकर भर्तृहरि राजा ने योग को धारण किया था।
इस प्रकार से संवत्सर के दिन परिमित उपदेश-संग्रह नामक उपदेश-प्रासाद ग्रन्थ की वृत्ति में छटे स्तंभ में नब्बेवाँ व्याख्यान संपूर्ण हुआ।
यह छट्ठा स्तंभ समाप्त हुआ ।