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________________ उपदेश-प्रासाद - भाग १ श्री चमत्कारी पार्श्वनाथाय नमो नमः प्रभु श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वराय नमो नमः उपदेश-प्रासाद ग्रन्थ कर्ताः- श्री विजय लक्ष्मीसूरीश्वरजी प्रथम स्तंभ श्री नाभि-राजा के पुत्र जो कल्याण और लक्ष्मी को देनेवाले, विश्व के बंधु, देवों के द्वारा प्रार्थना करने योग्य, जो वास्तविक रूप से तत्त्व-सिन्धु है, दीप्ति से प्रकाशमान तथा आदित्य-चन्द्र को जीतनेवाले आदि जिनेन्द्र प्राणियों का रक्षण करे ! श्री नाभि-राजा के विपुल वंश रूपी पुष्करत्व में जो चिद्रूप-किरण के समूहों से सूर्य के समान हुए थे तथा अपने पराक्रम से मोह रूपी अंधकार के समूह को शांत करनेवाले कल्याणवर्णवाले वे विभु विभूति के लिए हो ! ___ जो कल्याण-रूपी लक्ष्मीयों के अद्वितीय हेतु है और त्रैलोक्य-लक्ष्मी के द्वितीय हेतु सहित जो है, ऐसे श्री विश्वसेन के पुत्र तथा गांभीर्य रूपी लक्ष्मी के लिए समुद्र तुल्य श्रीशांतिनाथ का मैं आश्रय लेता हूँ! तिर्यंचों के दया के लिए पाणिग्रहण के बहाने से ही स्वयं ही रथ में बैठे हुए तथा मोह रूपी असुर को दूर करने के लिए विष्णु के समान कांतिवाले और कामदेव के दमन में महादेव सदृश वे नेमिनाथ हमें सुख दे ! हे कृष्ण द्वारा प्रार्थित ! हे नाथों के नाथ ! हे वामादेवी-पुत्र!
SR No.006146
Book TitleUpdesh Prasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandsuri, Raivatvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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