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इतिहास क्या कहताहै ? • देवलोक तथा नंदिश्वर द्वीप आदि में शाश्वत जिन प्रतिमा है। • असंख्य वर्ष पुरानी श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, श्री स्थंभन पार्श्वनाथ भगवान
(खंभात), श्री नेमनाथ भगवान(गिरनार) आदि की जिन प्रतिमाएं मौजूद है। • सवा दो हजार वर्ष पहले हुये संप्रति महाराजाकी बनाई हुई सैंकडो जिन प्रतिमा
जगह-जगह पर मौजूद है। • २३०० वर्ष पूर्व के महाराजा खारवेलके शिलालेख में जिनप्रतिमा का उल्लेख है। • ८६००० वर्ष पूर्व द्रौपदीने जिनप्रतिमा की पूजा की है। • परमात्मा महावीरदेव के पिताश्री सिध्दार्थराजा ने जिनपूजा की है। • मूर्तिपूजा का विरोध पिछले ५०० वर्षों में ही हुआ है। • ५०० वर्ष से पुराना कोई भी शास्त्र या कोई भी इतिहास मूर्तिपूजाके विरोधियों
के पास नहीं है। • बौध्द धर्मग्रंथोमें गौतम बुध्द के समय की जिनप्रतिमा का उल्लेख है। • अमूर्तिपूजक कई संत सत्य का साक्षात्कार होने पर मूर्तिपूजा का स्वीकार करके
संवेगी साधु बने हैं।
मूर्तिपूजान मानने के लिये • सूत्रों को उडाया। (आगमोंको अमान्य किया) • सूत्रों के पाठ बदल दिये। • इतिहास को विकृत किया। • सूत्रों के अर्थ उल्टे किये। • पूर्वाचार्यों को अमान्य किया।
क्यायहकदाग्रह नहीं है? जिनपूजा का निषेध करने के कारण कई श्रावक -अन्य देवों के मंदिरोमें जाने लगे हैं । (क्योंकि आर्य देशके हर एक मनुष्यके हृदय में अद्रश्य परिबलों के प्रति श्रध्दा और भक्ति होते ही हैं।) इस मिथ्यात्व का जिम्मेदार कौन ?
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