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________________ [ 83 ] 1 परन्तु आधुनिक समय में उस गंभीर आशय को बिना समझे प्रनेक विकल्प उठते हैं । उन महाशयको चाहिये कि पूर्व आचार्यों के उस गभीर आशय के अनुसार किये हुवे अर्थ पर ही दृढ़ विश्वास रक्खें । प्रिय ! पूर्वाचार्य नवें दसवें अध्ययन के सम्बन्ध में उक्त गाथा का अर्थ वृत्तिकार ने विस्तार से किया है । उनको सम्पूर्ण लिखे तो ग्रंथ बढ जावे | इसोसे इस सम्बन्ध पर मुद्दे की बात लिख देता हूँ । पृष्ठचम्पानगरी में साल राजा, महासाल जुवराजा, राजा की बेन यशोमती, बेनोई पिट्ठर, भानजा गांगेल है। श्री वीर प्रभु की देशना सुन साल महासाल गागलि भांनजे को राज देके दीक्षा ग्रहण करी थो| 11 अंग पढ कर राजगृही नगरी आया । भगवान से अरज करी गौतम स्वामी कैसे थे, पीछे चम्पा पधारे । भगिनी 1 बेहनोई 2 भानजा 3 इन तीनों को दीक्षा दी ! पीछे राजगृही आते समय साल महासाल पिट्ठर यशोदा गांगेलि ए 5 जन को आत्म भावना भावतों को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ । भगवान के पास आकर पाँचों प्रदक्षिणा देके केवली पर्षदा में बैठे । गौतमस्वामी वारे तो भगवान ने फरमाया गौतम ! केवली की श्राशातना हुई। तब गौतम स्वामी के वली को खमावी मन में चितवे कि मेरे प्रतिबोधितों को केवल ज्ञान हो जाता है, परन्तु मुझे क्यों नहीं होता ? उस समय देव ध्वनि हुई कि माज भगवान वीर प्रभु ने व्याख्यान में फरमाया है ( यत-अद्य भगवता व्याख्यावसरे एवमादिष्टं यो मुनिचरः स्वलब्ध्या अष्टापदाद्रौ चेत्यानि वन्दते स तेनैव भवे सिध्यतीति श्रुत्वा गौतमः स्वामिनं पृच्छति भगवन् ! अहमष्टापदे चैत्यानि वन्दितुं यामीति । भगवता उक्त व्रजाष्टापदे
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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