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________________ ( 48 ) अर्थ-श्रावक कोइ देवता का साज नहीं वंछय न वांदे, न पूजे । इतने पर भी कुल देवी पूजने का भ्रम दूर न हुवा हो तो मोर सुन लीजिये । श्रीशाता सूत्र अ0 8 श्रीमल्लिनाथ जी ने भी जिन प्रतिमा पूजी का पाठ - (हाया कयबलिकम्मा) सिद्ध हुआ। (2) भगवती श० 7 उ. 9 वर्णनागनतुवेजी ने प्रतिमा पूजी। (3) भगवती श0 11 1० 12 पालभिया नगरीका इसीभद्र पुत्र प्रादि बहुत श्रावकों ने जिन प्रतिमा पूजी । (4) भ० स० 12-1 मंख पोखली प्रादि ने जिन प्रतिमा पूजी _(5) भ० स० 12-2 जैवंती, मृगावती, उदाई राजा ने प्रतिमा पूजी मोर भी उदाइराजा मंडुक, श्रावक कार्तिक सेठ पादि का अधिकार है। (6) माता प्र. 5 यावच्चा पुत्र प्रादि 2500 सौ मुनि श्री शत्रुञ्जय तीर्थ पर पधारे हैं। .. (7) ज्ञाता अ. 8 मल्लिनाथ प्रभु ने प्रतिमा पूजी और प्राचारंगादि 5 सूत्र तो लिख पाये हैं । 26 सूत्र अगाडी लिखूगा सों देख लेना मागे (2) प्रश्न किये हैं [1] क्या तुम्हारे मूर्तिपूजकों की कन्याएं पांच पति कर सकती हैं ? [2] प्रश्न-क्या तुम्हारे मूर्ति पूजने वालों के विवाहों में म
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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