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( 46 ) धर का वचन सत्य है कि (ए० पी०) का स्वकपोल कल्पित गपोडा सत्य है ? पाठक स्वयं विचार लेवें।
आगे लिखा है कि विधिवाद में पता नहीं मिले तब चरितानुवाद की साक्षी देते हो इत्यादि । . प्रिय ! अव्वल तो आप किसी जैन मुनिकी भक्तिकर विधिवाद चरितानुवाद को समझो । विधिवाद चरितानुवाद किसे कहते
देखो ! मेधकुमार, थावच्चापुत्र प्रादि की दीक्षा महोत्सव सूत्र में चली है । प्राप उसको क्या कहोगे? जो विधिवाद कहोगे तो अापके मत का जड मूल से निकंदन हो जायगा । यदि चरितानुवाद कहोगे तो द्रोपदीजी की पूजा की तरह उनका संयम भी चरितानुवाद में कहना पड़ेगा। अब किस बिल से धसोगे?
देवानुप्रिय ! तात्पर्य यह है कि गणधर भगवान सम्बन्ध पर कवन फरमाते हैं जिसमें विधिबाद का कथन विधिवाद में समझना और चरितानुवाद का कथन चरितानुवाद में समझना । जैसे मेषकुमार का जन्म से दीक्षा तक विधिवाद में श्रावक प्रतिमा पूजी सो सुतो। ...
[4] भगवतो म० १२० 5 तुगीया नगरी के श्राधक