SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 44 ) पत्-तएणं सा दोवह रायबर कन्ना जेणेव मज्जणघरे तेणे. व उवागच्छइ । मज्जणघरमणुप्पविसइ हाया कयबलि कम्मा कयकोउय मङ्गलपायच्छित्ता सुद्धपावेसाई वत्थाई परिहियाई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ जेणेव जिनघरे तेणेव उवागच्छइ 2 जिनघरमणुपविसइ पविसइत्ता आलोए जिणपडिमाणं पणामकरेइ लोमहत्ययं परामुसइ। एवं जहा सुरियाभो जिणपडिमाओ अच्चेइ तहेव भाणियध्वं जाव धुवं डहइ । धुवं उहहत्ता वाम जाणु अचेइ अंचेइत्ता बाहिणजाणुधरणीतलसि निहट्ट त्तिरक्खुत्तो मुद्धाणं धरणी तलसि निवेसेइ निवेसइत्ता इसि पच्चुण्णमइ करयल जापति कट्ट, एवं वयासी नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव सम्पत्ताणं वन्बइ नमसइ जिनघराओ पडिणिक्खमई । अर्थ - तब सो द्रोपदी राजवर कन्या जहां स्नान मज्जन करने का घर ( मकान ) तहां आवे । मज्जन घर में प्रवेश करे । स्नान करके किया है बलिकर्म पूजाकार्य अर्थात् घर देहरे में पूजा करके कौतुक तिलकादि मंगल, दधि, दूर्वा, अक्षतादि से ही प्रायश्वित दुःस्वप्नादिके घातक किये हैं । जिसने शुद्ध उज्ज्वल
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy