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________________ ( 40 ) जंघाचारणस्स णं भंते ! उडढं केवतिए गतिविसए पन्नतें ? गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पाएणं पंडगवणे समोसरणं करेति समो. 2 तहि चेहयाई वंदति तहि चे. 2 ततो पडिनियत्तमाण बितिएणं उप्पाएणं नंदणवने समोसरणं करेति नंदणवने 2 तहिं चेइयाइ वंदति तहि 2 इह आगच्छइ 2 इह चेइयाइं वंदति, जघाचारणस्स णं गोयमा ! उड्ढे एवतिए गतिविसए प. । अर्थ हे भगवन् ! जंघाचारण मुनि का तिरछी गति का विषय कितना है ? गौतम ! एक डिगले में रुचकवर जो तेरमा द्वीप है उसमें समोसरण करे, वहां के चैत्य अर्थात् शाश्वते जिन'मदिर (सिद्धायतन) में शाश्वती जिन प्रतिमा को वोदे, वांद के वहां से पीछे निवर्तता हुआ दूसरे डिगले से नंदीश्वर द्वीप में समवसरण करें, करके वहां वो सभी चैत्यों को वांदे, वांद के यहां के अर्थात भरत क्षेत्र में प्रावे आकर के चैत्य अर्थात् प्रशाश्वती जिन प्रतिमा को वांदे । जंघाचारण की तिरछी गति का विषय इतना है । ता हे भगवन् ! जंघाचारण मुनि का उर्द्ध गति का विषय कितना है ? गौतम ! एक डिगले में पांडक बन में समवसरण करे, करके वहां चैत्यों को वाँदे वांद के वहाँ से पीछे फिरता हुप्रा दूसरे डिगले में नंदन वन में समवस ण करे, करके वहां के चंत्य वांदे, वांद के यहां आवे, आकर के चैत्य वादे गौतम ! जंघाचारण को उर्व गति का विषय इतना है । इसी मुताबिक विद्याचारण है परन्तु उत्पात में फर्क है । प्रतिमा'वांदने का अधिकार सदृश है।
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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