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________________ (क) प्रस्तावना [ प्रथम संस्करण की ] प्रिय पाठको ! प्रतिमा छत्तीसी में बत्तीस सूत्रों में प्रतिमा की सूचना मात्र दरशाई थी। उस पर स्थानकवासी साधु संतोकचन्दजी तथा 'ए, पी. जैन' लश्कर वाले ने अपनी अनादि प्रवृत्ति अनुसार कुयुक्तियां लगाकर बिचारे भद्रिक जोवों का दीर्घ संसार के पात्र बनाने का प्रयत्न किया है । इतना ही नहीं बल्कि मुझ पर भी वृथा आक्षेप और अनार्य वचनों से गालियों की बौछार की है। परन्तु विचारने का विषय तो यह है कि श्री तीर्थंकरों, गणधरों तथा पूर्वाचार्यों के वचन का भी जिन्होंने तिरस्कार कर दिया है वे मुझे गालियां दें इसमें आश्चर्य ही क्या है ? लेकिन विद्वान् इनके लेख को पढ़ेंगे तो अवश्य कहेंगे कि यह कृतघ्नी दयामागियों (?) की दया (?) का सूचक है। यहां मुझे ज्यादा विवेचन करने की आवश्यकता नहीं है । साधु का धर्म क्षमा करने का ही है । इस लिए इन नादानों की बाल चेष्टा पर ख्याल न करके केवल उपकार बुद्धि से ही इस पुस्तक को प्रारम्भ करता हूं। -- -
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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