SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 13 | दूर देश में साधु को वंदने को जाते हैं । 1 गुरु को लेने को सामने जाते हैं । नगर प्रबेश भी अति उत्साह से कराते हैं । साधु को पहुंचाने भो जाते हैं । 14 15 16 17 1 18 [ 21 ] | पर्युषण में तपस्या और देव गुरु की अधिक भक्ति करते हैं । दीक्षा महोत्सव करते हैं । 13 14 15 साधु का मृत महोत्सव करते हैं । स्वामी वच्छल करते हैं । 19 । | साधु अपना लेख छापे में छपाते हैं। 241 16 17 18 | दूर देश में साधु को बन्दने को जाते हैं । नगर गुरु को लेने को सामने जाते हैं। प्रवेश प्रति उत्साह से कराते हैं । व साधु को पहुंचाने जाते हैं 2 पर्युषण में तपस्था व साधर्मिक की भक्ति करते हैं और भट्टी भी अधिक जलाते हैं । दक्षा महोत्सव करते हैं । + साधु को मृत महोत्सव करते है । दया पालते हैं। लड्डु खाते हैं । 19 | साधु अपना लेख छापे में छपाते हैं ।
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy