SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 105 ) आदि को हित शिक्षा देते हैं । हे बंधव ! आपने लिखा कि घेवरचन्द ने गप्पमारी तथा झूठ लिखा है । यह आपका वचन कैसा है सो विचारो ! श्री तीर्थकर गणधर-पूर्व आचार्य का वचन था जिसे मैंने लिखा था । उसको आप ने गप्प तथा झूठ कह दिया। प्रिय ! मैंने आपका टोला छोड़ दिया तो मेरे पर द्वेष कर इतनी गालियां दीं। उससे संतोष न हुवा हो तो और 100-200 देनी थी। परन्तु श्री तीर्थकर गणधरों के बचन को गप्प झूठ कहना ए आप को लाजिम नहीं था। शायद किसी शासन द्वेषी के सिखाने से कह दिया हो तो अब भी इस बात का प्रायश्चित ले के अपनी आत्मा को शुद्ध करो। मुझे आशा है कि दोनों महानुभाव इस । किताब को पढ़ के अपना नरभव सफल अवश्य करेंगे। दर्शन से दुःख मिटे-पूजन से पाप कटे मन्दिर में जाकर भगवान के दर्शन करने की इच्छा होवे तब एक उपवास का, दर्शन के वास्ते अपने स्थान से उठे तब दो उपवास का, मन्दिर जाने को तैयार हो तब तीन उपवास का, मन्दिर की तरफ जाने लगे- एक कदम रखे तब चार उपवास मन्दिर की तरफ चलते चलते पांच उपवास का पुन्य होता है, प्रभु की प्रतिमा को भाव से वंदन करने पर अनन्त पुन्य होता है । पूजन करने पर उससे सौ गुना पुन्य होता है। सामायिक पांचवीं कक्षा का धर्म है। भगवान का दर्शनपूजन चौथी क्लास का | चौथी पास किए बिना पांचवीं में बैठने वाला फैल हो जाता है । इसलिए सामायिक करने वालों को भी मन्दिर में प्रभुजी के दर्शन-पूजन करने ही चाहिए।
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy