________________
२४८
दीपावली पर्व
गुरुवाणी-३ तीसरा आरा चौथे आरे के समान होगा। इस आरे के अन्त में तीर्थंकर जन्म लेंगे। इस प्रकार भविष्यकाल का स्वरूप बताया। भगवान् ने देखा कि जीवन का अन्तिम क्षण आ रहा है। गौतम का मेरे ऊपर अत्यधिक अनुराग है, अतः इसे दूर भेजना चाहिए। इस प्रकार विचार कर भगवान् गौतम स्वामी को देव शर्मा को प्रतिबोध देने के लिए भेजते हैं। सामान्यतः तो भगवान से पूछने पर उतना ही उत्तर मिलता है, किन्तु अन्तिम १६ प्रहर तक कोई पूछे या न पूछे फिर भी इन लोगों को सब कुछ बता देना है। इसी करुणा से भगवान ने प्रश्न किए बिना ही अखण्ड धारा से देशना दी। अमावस्या की पिछली रात है। भगवान समाधि में बैठे हुए हैं अ.... इ.... उ.... ऋ..... ल.... इतना उच्चरण करें उतने समय की ही समाधि । तत्क्षण ही भगवान की पुण्यात्मा ज्योति में मिल गई। जगत् में से प्रकाश चला गया, चारों और विषाद, दुःख और उद्वेग छा गया। एकत्रित समस्त राजाओं ने सोचा की भाव दीपक चला गया है। अब द्रव्य दीपक का प्रकाश करें। इन विचारों के कारण ही उन लोगों ने दीपकों की ज्योत् जलाई इस प्रकार उसी दिन से दीपावली पर्व प्रकट हुआ।
। भगवान् ने चौविहार छट्ठ की तपस्या करके देशना दी थी। इसी कारण आज भी कितने ही महानुभाव चौविहार छट्ठ करके उनका जाप करते हैं। एक ओर भगवान् का निर्वाण और दूसरी तरफ गौतम स्वामी को केवलज्ञान, देव शर्मा को प्रतिबोध देकर पीछे लौटते हुए गौतम स्वामी देवों की दौड़ा-दौड़ देखते हैं और पूछने पर उन्हें ज्ञात होता है कि भगवान् मोक्ष पधार गए हैं। यह सुनते ही उनको मार्मिक आघात लगता है। वीरवीर की पुकार करते हुए वे वीतराग बन जाते हैं।
विरोधियों को नहीं, विरोध को दूर करो,
शत्रु को नहीं, शत्रुता को दूर करो।