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दीपावली पर्व
गुरुवाणी-३ करेंगे। उनके उज्ज्वल कार्यों से समाज रंजित होगा। गीतार्थ एक कोने में बैठे रहेंगे। उनको भी इन हीन आचरण वालों के साथ मेल-जोल रखना पड़ेगा। गोरजियों का शासन चलता था उस समय साधु भी उनकी सेवा में रहते थे। पूज्य मणिविजयजी दादा के पहले गोरजियों का शासन था। पालकी में बैठते थे, ठाठ-बाट से रहते थे। आज भी देखो न, गुरु ज्ञानी
और संयमी होने पर भी यदि शिष्य वक्ता हो तो शिष्य के आधार पर ही गुरु को जीना पड़ता है। शिष्य के हाथ में ही संचालन रहता है। कहते हैं कि अस्थिर चित्त वाले मनुष्य अधिक हों और समझदार मनुष्य दो-चार ही हो तो, अस्थिर चित्त वालों के साथ ही रहना पड़ता है। जैसे के साथ तैसा
पृथ्वीपुर नगर में पूर्णभद्र नाम का राजा था। उसका सुबुद्धि नाम का मन्त्री था। एक बार राजसभा में नैमित्तिक आया। मन्त्री ने पूछा - भविष्यकाल कैसा होगा? ज्ञान के आधार से नैमित्तिक ने कहा - मन्त्रीश्वर! आज से एक महीने के भीतर वर्षा होगी और उस वर्षा का पानी पीने से लोग पागल हो जाएंगे। कितने ही दिनों बाद दूसरी वर्षा होगी उस वर्षा का पानी पीने से सब लोग निरोगी हो जाएंगे। सब लोग सावधान नहीं रहते हैं। वर्षा हुई, लोगों ने वह पानी पिया, सब लोग पागल हो गये। राजा
और मन्त्री दोनों सावधान थे इसलिए उन्होंने वह पानी नहीं पिया। इस कारण से वे दोनों श्रेष्ठ और समझदार रहे। पागलों का समूह राजसभा में नाचते हुए आया। राजा और मन्त्री स्वस्थ बैठे थे। पागलों को ऐसा लगा कि यह राजा और मन्त्री दोनों ही पागल है इसीलिए चुपचाप बैठे हैं। अत:एव उनको मारकर निकाल दें? मन्त्री बुद्धिमान था। उसने राजा से कहा - राजन्! आप भी नाचने लगो, नहीं तो यह लोग अपने को अच्छी तरह से पीटेंगे। पागलों के साथ पागलों जैसा व्यवहार किया। दोबारा वर्षा हुई, लोगों ने उस पानी को पिया, सब लोग समझदार बन गए। अन्त में उनको अपनी गलती का अहसास हुआ। आज देखो न, तुम भी, जो चलता है, उसी में सम्मिलित होना पड़ता है। प्रजा के जो सच्चे हितेशी