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पर्युषणा-तृतीय दिन
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गुरुवाणी-२ संकोच में पड़ गये। अरे, कहीं यह अपशकुन तो नहीं हो रहा है? उसी समय सामने से एक ज्योतिषि आ रहा था । उसने यह दृश्य देखा और जोर से बोला- अरे मूर्खो ! खड़े-खड़े क्या देख रहे हो, शीघ्र प्रवेश करो, शुभ शकुन है। काले नाग पर चिड़िया नाच रही है। एक सामान्य सी चिड़िया नाग जैसे भयंकर प्राणी को वश मे कर रही है। तुम लोग सोच में न पड़े होते तो यहाँ के राजा बनते । खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, तुम बिना ताज के राजा हो जाओगे । पिता-पुत्र माण्डवगढ़ आए । न्याय-नीति से नमक का व्यापार चालू किया। चारों तरफ पेथड़ लूणियो के नाम से . प्रसिद्धि हुई। नमक से अर्जित सम्पत्ति से उन्होंने घी का व्यापार चालु किया। ताजा और सुगन्धिदार घी उचित मूल्य पर बेचने लगे । अब घीये के नाम से प्रसिद्ध हो गये। भाग्य के दरवाजे खुले । एक समय एक रबारण (घी बेचने वाली) घी का घड़ा लेकर आयी । वह शीघ्रता के कारण घर से ढोणी लाना भूल गई थी। इसीलिए रास्ते में किसी वेलड़ी के घास की इंढोणी बनाकर सिर पर रखकर आयी थी । पेथड़ के वहाँ इंढोणी सहित घड़ा छोड़कर वह दूसरे ग्राम में खरीददारी के लिए चली गई। पेड़ को कह गई थी कि मुझे जल्दी है, इसीलिए आप घड़े का घी तौल लेना । पेथड़ की नीतिवान के रूप में कैसी अमिट छाप थी कि वह घी का भरा हुआ घड़ा उसके पास छोड़ गई। पेथड़ घड़े का घी खाली करके वापिस इंढोणी पर रख देता है । रबारण खरीददारी कर वापिस लौटती है और घड़ा लेने के लिए जाती है तो देखती है कि घड़े के कण्ठ तक घी भरा हुआ है। पेड़ को कहती है - मै आपको कह गई थी कि घड़ा खाली करके रख देना। मुझे जल्दी है इसीलिए मै जा रही हूँ। पेथड़ विचार करता है कि मैंने अपने हाथ से घड़ा खाली किया है तो फिर यह वापिस कैसे भर गया? घड़े के नीचे देखता है तो उसे घास की इंढोणी नजर आती है । वह घास को पहचान जाता है। यह तो चित्रावेली है । इसके ऊपर जो भी वस्तु रखी जाए वह अक्षय होती है अर्थात् कभी खत्म नहीं होती है ।