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________________ ४६ पर्युषणा - द्वितीय दिन __ गुरुवाणी-२ है, अन्त में लाछी छीपी उसे नहीं लेती है। कैसे थे उस युग के मानवी? धन देने और ग्रहण करने के लिए कहासुनी होती थी, जबकि आज धन के लिए सगा पुत्र भी बाप का खून करते हुए आगे-पीछे नहीं सोचता है। उदा बहुत बुद्धिशाली और चतुर व्यक्ति था। धन प्राप्त होने से उसका व्यापार बढ़ा। न्याय, नीतिपूर्वक व्यापार करने के कारण उसकी कीर्ति राजा तक पहुँची और एक दिन वह सिद्धराज जयसिंह का मन्त्री बना। सिद्धराज विशेषण था और जयसिंह उसका नाम था। अनेक राजाओं पर विजय प्राप्त करने के कारण वह सिद्धराज बना। खम्भात जिले के मन्त्री के रूप में नियुक्ति उदयन की हुई। उसके जिलाधीश रहते हुए हेमचन्द्रसूरिजी महाराज की दीक्षा हुई। इस प्रकार लाछी छीपी की साधर्मिक भक्ति में से उदयन मन्त्री मिले और उदयन मन्त्री के द्वारा आचार्य भगवन् मिले। (विशेष जाने - इसी पुस्तक के पर्युषणा-प्रथम दिन में अमारि प्रवर्तनयुगल जोड़ी से) अरे! कलिकाल में भी जिनकी छत्र-छाया में सत्युग चल रहा था। यह देवाधिदेव आदिनाथ का मन्दिर भी उदयन मन्त्री के पुत्र वाग्भट्ट (बाहड़) ने बनवाया था। शत्रुजय का १४वाँ उद्धार .... उदयन मन्त्री सणोसरा के ठाकुर को अधीन करने के लिए सेना लेकर निकले। मार्ग में शत्रुजय आने पर उन्होंने विचार किया - दादा के दर्शन करके युद्ध करने के लिए जाऊं। इस कारण वे शत्रुजय आए गिरिराज पर चढ़े। द्रव्यपूजा आदि कर भावपूजा कर रहे थे, उसी समय उनकी दृष्टि जलते हुए दीपक को खेंचकर ले जाते हुए चूहे पर पड़ी। उस समय दादा का मन्दिर लकड़ी का बना हुआ था। यह ध्यान में आते ही वे चौंके। अरे, इस दृश्य पर यदि मेरी दृष्टि नहीं पड़ी होती तो सारा मन्दिर जल जाता। दादा का क्या होता? मेरे साधर्मिक बन्धु दर्शन के बिना कैसे तिरेंगे? इस प्रकार आगामी भय को ध्यान में रखकर उन्होंने मन में संकल्प किया - यह मन्दिर मुझे पत्थर का बनवाना है। संकल्प करने के बाद उदयन मन्त्री युद्ध क्षेत्र में
SR No.006130
Book TitleGuru Vani Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
PublisherSiddhi Bhuvan Manohar Jain Trust
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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